MAA/माँ

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आज मशीनी युग,
कल ढेकी,चक्की का दौर,
हुक्मउदूली ना हो जाए,दौड़ती चहुँओर,
वैसे तेरे ममत्व,वात्सल्य,त्याग की तुलना बेमानी है,
मगर जो मेरे आँखों के सामने
चलचित्र की भांति
दौड़ती
उसकी दास्ताँ पुरानी है,
आज डायपर,बिजली पंखों का काल,
कल भींगे बिस्तर और ठिठुरन भरी रात,
न जाने कितनी रात तुम जागकर बिताई होगी,
सूखे बिस्तर पर हमें सुलाकर,
न जाने कैसे,
गीले बिस्तर पर तुझे नींद आई होगी!
बचपन,
जब हम अबोध थे
न जाने कितना तुझे सताए होंगे,
शैतानियां,बदमाशियाँ,
नादानियाँ,
गिन पाना मुश्किल,
न जाने कितना तुझे रुलाये होंगे,
माँ! तेरे त्याग को गिन पाना मुश्किल,
तुझे एक पल भी भूल पाना मुश्किल।
!!!मधुसूदन!!

37 Comments

    • और मैंने महसूस कर के ही लिखा है।

    • बिल्कुल। माँ शब्द ही पर्याप्त है।

  • बहुत प्यारी और भावपूर्ण कविता है.
    जानते हैं मधुसूदन, मेरी बेटियों के जन्म के बाद यह ख़्याल अक्सर मेरे दिल में आता था- मेरी माँ ने भी इन तकलीफ़ों और परेशानियों को झेला होगा मेरे लिए.

    • बिल्कुल उसके दर्द का बखान मुश्किल। सुक्रिया आपका।

          • मेरे कहने का मतलब है – बेटे भी माँ के क़रीब होते हैं , लेकिन बेटियाँ माँ की बातों को अच्छे से समझतीं हैं.

          • बिल्कुल आपका कहना जायज है। बेटियां की माँ सहेली की तरह होती है। सच है कि बेटे बेटियों में कोई फर्क नही माँ की नजरों में मगर बेटियाँ फिर भी बेटियाँ हैं। सहमत हैं हम भी।

  • रोमांचक कविता।
    एक बेटे के दिल की बातों को खूब दर्शाए हैं।
    💕👌👍

    • माँ के त्याग को दर्शाना मुश्किल। जितना लिखें कम है। धन्यवाद आपका।🙏

  • माँ के लिए संभव नहीं होगी मुझसे कविता

    अमर चिऊँटियों का एक दस्ता मेरे मस्तिष्क में रेंगता रहता है

    माँ वहां हर रोज़ चुटकी-दो-चुटकी आटा डाल देती है
    माँ ने हर चीज़ के छिलके उतारे मेरे लिए

    देह,आत्मा,आग,और पानी तक के छिलके उतारे

    और मुझे कभी भूखा नहीं सोने दिया।

    ~ चंद्रकांत देवताले

    • वाह।
      बहुत ढूंढ ढूंढ कर निकाल रहे हैं,
      समय का जबरदस्त उपयोग।

  • माँ! तेरे त्याग को गिन पाना मुश्किल,
    तुझे एक पल भी भूल पाना मुश्किल
    😊🌸🙏

    बहुत सुंदर कविता ब्रो 🌸❤😃

  • Bahut khoob!
    Maa, tere tyaag ko gin pana mushquil
    Tujhe ek pal bhi bhool pana hai mushquil
    Meri bikhri yadon ki maa tu hi hai manzil
    Intezaar hai uss din ka jab phir se hum lenge mil
    Ya toh mujhe paas bula le,
    ya toh dharti pe aa mujhse mil
    Tere bagair na bhaata koi yahaan
    Tere bin yeh jahaan lagta bojhil

    • Waah……waah.
      apka bhi jawab nahi…..kitni dard bhari hai ek ek shabdon me……bahut hi khubsuray abhivyakti.dhanyawad apka.

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