ADI GURU SHANKRACHARYA/आदिगुरु शंकराचार्य

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सागर को गागर में भरना,
मुश्किल कैद गगन को करना,
नामुमकिन तारों को गिनना,मैं गिनकर दिखलाऊँ कैसे,
परमपूज्य गुरु आदि शंकराचार्य की कथा सुनाऊँ कैसे।
गांव कालड़ी,केरल का वह
ब्राम्हण का कुल धन्य,
धन्य धरा वह माटी जिसपर
हुआ गुरु का जन्म,
हर्षित माँ आर्यम्बा,शिवगुरु पिता,
संग पेरियार नदी,
उस बालक से अनजाना जग,
मगर नही अनजान महि,
हर्षित ऋतु,प्रभंजन कैसे,
वन हर्षित उपवन तब कैसे,
कैसा हर्षित व्योम आनंदित चन्द्र,सूर्य लिख पाऊँ कैसे,
परमपूज्य गुरु आदि शंकराचार्य की कथा सुनाऊँ कैसे।
बचपन नटखट,शांत आदि गुरु,
देख मात डरती भी होगी,
क्या लिखता,पढ़ता सुत हरपल,
चिंतित माँ रहती भी होगी,
बाल्यकाल जब उम्र खेल की,
ना नीति,ना लक्ष्य,
आठ साल की उम्र में कर ली
वेद सभी कंठस्थ,
जिस आयु में हमसब कच्चे,
वही उम्र वे जिद्द के पक्के,
छोटी आयु बात बड़ी थी,
सुनकर उनकी मात डरी थी,
गृह को त्याग बने सन्यासी,
अन्तस्तल गुरुवर की प्यासी,
ना राही ना डगर सजे थे,
ना कोई परिवहन बने थे,
घने विटप वन जीव थे हिंसक,
सोच प्रबल चल पड़े अहिंसक,
कैसे वन-वन पाँव बढ़े तब,
केरल से इंदौर चले तब,
कैसे गुरु गोविंदपाद की खोज किया लिख पाऊँ कैसे,
परमपूज्य गुरु आदि शंकराचार्य की कथा सुनाऊँ कैसे।
नदी नर्मदा तट पर स्थित
ओंकारेश्वर धाम,
गुरु खोज में वहीं ठहर गए,
आदि गुरु के पाँव,
गुरुमुख हो शिक्षा सब पाकर,
बढ़े कदम जँह स्थित काशी,
जीवन मे कई कार्य बड़े थे,
प्राण कहाँ इस तन की दासी,
धर्म सिसकता,आडम्बर जग,
डगर कठिन आसान नही था,
हिन्दू धर्म के ज्योत बने तब,
सुगम भला वह मार्ग नही था,
उत्तर से दक्षिण पूरब से पश्चिम,
पैदल पाँव चले वे,
ज्ञानयुद्ध कर लाखों पंडित,
ज्ञानी के अज्ञान हरे वे,
वेदों पर मतभेद बड़े थे,
ज्ञानवान कई लोग अड़े थे,
कैसे सबको वे समझाए,
वेदों का मतभेद मिटाए,
कैसा वे शास्त्रार्थ किए उस क्षण को मैं लिख पाऊँ कैसे,
परमपूज्य गुरु आदि शंकराचार्य की कथा सुनाऊँ कैसे।
चार पीठ चहुदिशी भारत के,
गुरुवर ने बनवाए,
गोवर्धन,शारदा,श्रृंगेरी,
ज्योति पीठ कहलाए,
बारह वर्ष की उम्र में उनको
सर्वशास्त्र का ज्ञान हुआ था,
सोलह वर्ष की आयु थी तब,
ब्रम्हसूत्र पर भाष्य लिखा था,
बत्तीस वर्ष की जीवन रेखा,
धर्म सनातन जी भर देखा,
गुरुवर ने उद्घोष किया था,
‘ब्रह्मं सत्यं जगन्मिथ्या’
दुनियाँ को ये बोध किया था,
‘ब्रह्मं सत्यं जगन्मिथ्या’
मृत्यु अटल नियम सब झूठे,
भज गोविंदम्,भज गोविंदम्,
निराकार,साकार ब्रम्ह हैं,
भज गोविंदम्,भज गोविंदम्,
द्वैत वही अद्वैत ब्रम्ह है,
भज गोविंदम्,भज गोविंदम्,
दुर्जन बन सज्जन,सज्जन बन शांति,
शांतजन बंधन तोड़ो,
बंधनमुक्त मुक्त कर जन को,
रब से अपना नाता जोड़ो,
तत्वमीमांसा,दर्शन कैसा
धर्म सनातन का बल कैसा,
कैसा चिंतन,भाष्य गुरु का,पढ़ना मैं लिख पाऊँ कैसे,
परमपूज्य गुरु आदि शंकराचार्य की कथा सुनाऊँ कैसे।
!!!मधुसूदन!!!

30 Comments

  • भव सागर पार उतारत हैं
    कहुं धर्म बतावत कहुं भक्ति सिखावत ज्ञान कही
    उपदेशत नेम अरु प्रेम तुम्हीं
    करते प्रभु योग अरु क्षेम तुम्हीं
    मन इन्द्रिय जाही न जान सके
    नहीं बुद्दि जिसे पहचान सके
    नहीं शब्द जहां पर जाय सके
    बिनु तुम्हरे कौन लखाय सके

    • भव सागर पार उतारत है। वाह। बेहतरीन पँक्तियाँ गुरुवर के चरणों में समर्पित।🙏

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