YE KAISI NAFRAT/ये कैसी नफरत
शारीरिक बीमारी का इलाज सम्भव,
मन की विकृति को मिटाए कौन?
जब नफरत भरा दिल में,
उसे प्रेम का दरिया दिखाए कौन?
एक आँधी सी चली है जमाने में,
कमियाँ ढूँढनेवालों की,
ऐसे बुद्धिजीवियों को खूबियाँ दिखाए कौन?
मुमकिन है अँधों को भी राह दिखाना,
जो आँखें बंद कर ले उसे डगर दिखाए कौन?
विश्व को जगाता रहा ज्ञान के प्रकाश से,
घर में बैठे बहरे उसे गीता समझाए कौन?
कीड़े तो सभी हैं चाहे नाली के या दाख के,
नालियों के कीड़े,दाख उसको चखाये कौन?
नींद में हो कोई जाग जाए झकझोरने से,
ढोंग नींद का किया जो उसको जगाए कौन?
है अदृश्य आपदा से घिर चुका अब मुल्क भी,
रंग अलग दुश्मनों का भिन्न अभी रूप भी,
फिर भी फतह निश्चित,सजग आज भी जांबाज मगर,
घर में अपने शत्रु तीर उसपर चलाए कौन?
घर में बैठा शत्रु गुप्त उससे जीत पाए कौन?
!!!मधुसूदन!!!
बहुत बहुत ही बढ़िया रचना है।
धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
नफ़रत को क्या इंसानियत प्यार भी नहीं बदल सकती….
बिल्कुल इंसानों का प्रेम ही नफरत मिटाता है। मगर तबतक जबतक आततायी प्रवृति के लोग स्वयं एवं मानव जाति का बहुत कुछ बर्बाद ना कर दें। ऐसा इतिहास बताता है।
यह तो सदियों से होता आया है।पृथ्वी पे रजत गुण वाले हैं तो तामसिक लोग भी कम नहीं ….
बिल्कुल सही। संघर्ष सदैव चलता रहा है।
bahoot hi achchhi hai…
Dhanyawad apka pasand karne aur sarahne ke liye.