शारीरिक बीमारी का इलाज सम्भव,
मन की विकृति को मिटाए कौन?
जब नफरत भरा दिल में,
उसे प्रेम का दरिया दिखाए कौन?
एक आँधी सी चली है जमाने में,
कमियाँ ढूँढनेवालों की,
ऐसे बुद्धिजीवियों को खूबियाँ दिखाए कौन?
मुमकिन है अँधों को भी राह दिखाना,
जो आँखें बंद कर ले उसे डगर दिखाए कौन?
विश्व को जगाता रहा ज्ञान के प्रकाश से,
घर में बैठे बहरे उसे गीता समझाए कौन?
कीड़े तो सभी हैं चाहे नाली के या दाख के,
नालियों के कीड़े,दाख उसको चखाये कौन?
नींद में हो कोई जाग जाए झकझोरने से,
ढोंग नींद का किया जो उसको जगाए कौन?
है अदृश्य आपदा से घिर चुका अब मुल्क भी,
रंग अलग दुश्मनों का भिन्न अभी रूप भी,
फिर भी फतह निश्चित,सजग आज भी जांबाज मगर,
घर में अपने शत्रु तीर उसपर चलाए कौन?
घर में बैठा शत्रु गुप्त उससे जीत पाए कौन?
!!!मधुसूदन!!!
harinapandya says
बहुत बहुत ही बढ़िया रचना है।
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
aruna3 says
नफ़रत को क्या इंसानियत प्यार भी नहीं बदल सकती….
Madhusudan Singh says
बिल्कुल इंसानों का प्रेम ही नफरत मिटाता है। मगर तबतक जबतक आततायी प्रवृति के लोग स्वयं एवं मानव जाति का बहुत कुछ बर्बाद ना कर दें। ऐसा इतिहास बताता है।
aruna3 says
यह तो सदियों से होता आया है।पृथ्वी पे रजत गुण वाले हैं तो तामसिक लोग भी कम नहीं ….
Madhusudan Singh says
बिल्कुल सही। संघर्ष सदैव चलता रहा है।
PAmit says
bahoot hi achchhi hai…
Madhusudan Singh says
Dhanyawad apka pasand karne aur sarahne ke liye.