HOLI/होली

एक दौर था अभावों का,
तब पकवान बामुश्किल बनते,
और रंग खरीदने को पैसे भी कम थे,
मगर होली का रंग कैसा? ये मत पूछना,
बस उमंग ही उमंग थे, रंग ही रंग थे।
तब बनती थी दोस्तों की टोलियाँ,
टूट पड़ते उनपर जो छुपते,शर्माते,
नजरों से बचना नामुमकिन,
कौन ऐसे जो कोरे रह जाते,
तब बजते ढोलक,झाँझ
घर-घर होली गाते,
माना अभावों का दौर था
मगर पुए,
वो तो हर घर में खाते,
मगर अब प्रचुरता का दौर,
सबके घरों में रंगों से भरे डब्बे और पुए भी,
परंतु जिधर देखो उधर डायबिटीज का कहर,
क्यों ना हो गाँव क्यों ना हो शहर,
अब नही होती होली वैसी,ना ही वैसे पुए खा पाते,
होली तो आती है अब भी रंगों लिए,
मनाते हम भी हैं मगर
उन अभावों वाले दिनों को
भूल नही पाते,भूल नही पाते।
आप सभी को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं। !!!Madhusudan!!!
Satya aur dhukhad vartaman.
Sachchaee yahi hai……Bahut viksit kar gaye hum….Dhnyawad apka.
पुरानी मीठी यादों और वर्तमान की कड़वी सच्चाई भारी कविता के लिए धन्यवाद।
बहुत धन्यवाद आपका।
ना ना आप कमजोर नही ना ही लेखनी में दम है। ये बातें सच्ची और जड़ों से जुड़ी है जिसके करीब आप भी हैं और हम भी। बहुत बहुत धन्यवाद । स्वस्थ्य रहिये। मुस्कुराते रहिये।
मेरे पापा एैसी बात कहा करते थे। आभावों में पले है वो। पर हमें देखने नहीं दिया। लेकिन कहीं ना कहीं उनका दर्द महसूस हे ही जाता है। और आप भी तो हमारे पिता समान ही है😇😇
जबतक सन्तान को अपने माँ-बाप का दर्द महसूश होता रहेगा तबतक वह कभी राह नही भटकेगा और ना ही कपङे माँ बाप को कोई कष्ट होने देगा। आप बहुत ही अच्छे दिल वाले हो। ईश्वर आपको तरक्की जरूर देगा।
🙏🙏😇😇😇
🙏🙏
एक दौर था अभावों का,
तब पकवान बामुश्किल बनते,
और रंग खरीदने को पैसे भी कम थे,
शुरुआत की पंक्तियों ने ही मेरे आँखें भर दी। शायद हम कमजोर है या आपकी लेखनी में वो बात है या ये दोनों ही। जो भी है रूह को छु गई है आपकी ये होली🙏🤗
वर्तमान समय के सच को लिखा है 👌🏼
पहले अभाव होता था पर दिल में खुशी सच्ची व भरपूर होती थी।
जी बिल्कुल। बहुत पहले से होती थी तैयारी। धन्यवाद आपका।🙏
आपका स्वागत है 🙏🏼