MAA BHARTI PUKARTI/माँ भारती पुकारती

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जाति की लड़ाई,धर्म,क्षेत्रवाद भारी,स्वार्थ फिर से खड़ा है इतिहास दोहराने को,

अब भी लाचार पोरस,राणा और चौहान, मान सिंह,जयचंद फिर अड़े हैं सब मिटाने को।

जात-पात की ये जंग,धर्म,क्षेत्र,मे हैं अंध,गए भूल सभी बेड़ियाँ लगी सहस्त्रों साल की,

फिर से घमंड वही झूठी अहंकार,स्वार्थ,दूसरे को नीच खुद श्रेष्ठतम दिखाने की।

भेद जाति,धर्म का मिटाने को खड़े सपूत,तोड़ ना मिला जो तोड़ पाए पड़ी फुट को,

स्वार्थ की चढ़ी बुखार,मिटते दिलों से प्यार,काटते भुजाएँ जो झुलाए उस कुपूत को।

देखकर बेहाल मात भारती कराहती,न दर्द का आभास है धिक्कार वैसे लाल को,

गुजरे हैं चंद साल,जुर्म की लिखी किताब,भूल गए कैसे सारे आज उस काल को।

आज भी नालन्दा,विक्रमशिला की उजाड़ धरा,हल्दीघाटी,पानीपत दिखाती है निशान को,

राम,कृष्ण,बुद्ध,महावीर की निशान कई,बिखरी पड़ी है नही दिखती नादान को।

चीखती माँ भारती,न भाए झूठी आरती,पुकारती शिवाजी,वीर भगत,आजाद को,

गुम हो चाणक्य कहाँ जननी बेहाल तेरी,एक बार फिर इस कुचक्र से निकाल दो,

एक बार फिर इस देश को संवार दो।

!!!मधुसूदन!!!

Jaati kee ladaee,dharm,kshetravaad bhaaree,svaarth phir se khada hai itihaas doharaane ko,

ab bhee laachaar poras,daahir,raana aur chauhaan,maan,jayachand phir ade hain sab mitaane ko.

jaat-paat kee ye jang,kshetr,dharm me hain andh,bhool gae bediyaan lagee sahastron saal kee,

phir se ghamand vahee jhoothee ahankaar,svaarth,doosare ko neech khud shreshthatam dikhaane kee.

bhed jaati,dharm ka mitaane ko khade sapoot,tod na mila jo tod pae padee phut ko,

svaarth kee chadhee bukhaar,mitate dilon se pyaar,kaatate bhujaen jo jhulae us kupoot ko.

dekhakar behaal maat bhaaratee karaahatee,na dard ka aabhaas hai dhikkaar vaise laal ko,

gujare hain chand saal,jurm kee likhee kitaab,bhool gae kaise saare aaj us kaal ko.

aaj bhee naalanda,vikramashila kee ujaad dhara,haldeeghaatee,paaneepat dikhaatee hai nishaan ko,

raam,krshn,buddh,mahaaveer kee nishaan kaee,bikharee padee hai nahee dikhatee naadaan ko.

cheekhatee maan bhaaratee na bhae jhoothee aaratee,pukaaratee shivaajee,veer bhagat,aajaad ko,

gum ho chaanaky kahaan jananee behaal teree,ek baar phir is kuchakr se nikaal do,

ek baar phir is desh ko sanvaar do.

!!!Madhusudan!!!

20 Comments

  • आपकी पंक्तियाँ पढ़ने के बाद एक प्रश्न उठता है मन में…….”मैंने माँ भारती के लिए क्या किया???”………..बस शर्म से मस्तक झुक जाता है😳😳😳
    हम बस नेताओं, सेनाओं, समाज पर उँगली उठाते है……खुद पर कभी नहीं😳

    • परिवर्तन हम ही लाते हैं मगर सृजन की राह वे गढ़ते हैं जिन्हें हम चुनते हैं। अफशोष की वोट और सिंघासन की राजनीति की चक्की में हमारी माँ भारती सदियों से पीस रही है।

    • धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।

  • बहुत प्रेरणादायक कविता है-आज फिर वहीं एतिहासिक महापुरुषों की फिर जरूरत है।

    • काश। हम उनके धूल समान भी बन पाते फिर आज ये ऐसे हालात ना होते।धन्यवाद आपका।

  • ललकार और पुकार अच्छी लगी. आशा है लोग सुनेगे और जागेंगे.

    • उम्मीद तो ऐसा ही होता है।पुनः धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए।

    • अच्छा लगा पसन्द आया मगर बहुत दुखी हैं हम लोगों की सोच से। जिसने भी बलिदान दिया होगा तो सपने में भी नहीं सोचा होगा कि हम ऐसे हो जाएंगे।

      • har kaal me acche aur bure, dono type k the…jisne balidaan diye usne acchai ki raah pakdi….

        aaj bhi acche bure dono type k log hai…..acchai per focus kerte hai….acchai me taqat hai burai dhakne ki….per burai kabhi acchai per bhaari nahi padd sakti

        • सही है। अत्यधिक गर्मी के बाद ही बरसात आती है। बुराई का अंत निश्चित है।मगर ये बुराई कई जिंदगियां बर्बाद करती है जिसे बचाना जरूरी है। पुनः धन्यवाद आपका।

  • Dhara prawah behtarin kavita..

    जाति की लड़ाई,धर्म,क्षेत्रवाद भारी,
    स्वार्थ फिर से खड़ा है इतिहास दोहराने को,
    अब भी लाचार पोरस,दाहिर,राणा और चौहान,
    मान,जयचंद फिर अड़े हैं सब मिटाने को।

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