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किसके क्या तुम नही जानते,
केवल मूरत नही मानते,
जनम-जनम का सेवक मैं,तूँ
आका,प्रभु,प्राणेश,
ऐ विघ्नेश,
कर तूँ दूर हमारे सारे कष्ट,क्लेश,
ऐ विघ्नेश।
तुम गौरी के प्राण प्यारे,
विघ्नेश्वर तुम, कहते सारे,
रिद्धि-सिद्धि के तुम हो दाता,
बल,बुद्धि,धन,जन सुखदाता,
एकदन्त,हे महाकाय
हैं तेरे पिता महेश,
ऐ विघ्नेश,
कर दे दूर हमारे सारे कष्ट,क्लेश,
ऐ विघ्नेश।
हे गणनायक,धर्म के रक्षक,
देख धर्म के बढ़ गए भक्षक,
कर उपकार जीर्ण तन हारे,
अब हम आए शरण तुम्हारे,
करो अनुग्रह वर दो,कर तुम,
दैत्य मुक्त फिर देश,
ऐ विघ्नेश,
कर तूँ दूर हमारे सारे कष्ट,क्लेश,
ऐ विघ्नेश।
!!!मधुसूदन!!!
ShankySalty says
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ है
केवल मूरत नही मानते,
जनम-जनम का सेवक मैं,
तूँ आका, प्रभु, प्राणेश,
ऐ विघ्नेश,
कर तूँ दूर हमारे सारे कष्ट, क्लेश
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए।
Yasmin Khan says
Bahot Sundar Sir Ji!
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad apka.
VIJAY KUMAR SINGH says
सुंदर सृजन. ॐ गणपतये नमः.
Madhusudan Singh says
सुक्रिया सर पसन्द करने और सराहने के लिए।