PUKAAR/पुकार
हे माँ मेरी सर्वेश्वरी,गौरी,सती,कात्यायनी,
हे माँ भवानी,अम्बिका,हे दक्षयज्ञविनाशिनी,
माँ कर रहे हैं गुहार सुन,माँ बेबसी,चीत्कार सुन,
सुन जन पड़े असहाय,बेबस,दुर्गे कष्ट-निवारिणी,
कर दूर तम-अज्ञान का,वर दे हमें सुखदायिनी।
माँ देख नित चहुँओर दंगे हो रहे इंसान में,
अंतर दिखा लड़ते सभी अल्लाह और भगवान में,
जब रब अजन्मा जग रचयिता,जंग क्यों जब है वही,
किसकी विरासत के लिए फिर द्वंद्व हैं करते सभी,
माँ ज्ञान दो सच्चाई क्या,रब एक फिर है लड़ाई क्या,
है कौन कुफ्र बढ़ा रहा,कट्टरता को फैला रहा,
कहता स्वयं को पाक,काफिर औरों को बतला रहा,
चहुँओर शोर प्रचंड महि,घण्टे कहीं अजान की,
धर्मांधता में फंस गई माँ जान अब इंसान की,
ये द्वंद्व क्यों माँ साध्वी,ये दौड़ कैसी शाम्भवी,
है भेद क्यों इंसान में माँ बोल दुर्गे,कृपालिनी,
कुछ सूर्य को सूरज कहे,दिनकर,रवि,भानु कोई,
फिर कौन है कट्टर जो दिनकर को कहे केवल सही,
माँ मिट रही इंसानियत,नित बढ़ रही हैवानियत,
रोता यहाँ इंसान हँसती धर्म की शैतानियत,
कर दूर शोक,संताप माँ,कर दूर दर्द,तमाम माँ,
कर दूर तम अंतःकरण भर ज्योति,ज्योति: प्रदायिनी,
कर दूर तम,दुख से घिरे वर दे हमें सुखदायिनी,
कर दूर तम,दुख से घिरे वर दे हमें सुखदायिनी।
!!!मधुसूदन!!!
Deep and beautiful!
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Dardnaak kavita hai lekin sach hai. Bahut khoob.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Every words touched the heart…🙏🙏
Thank you very much for your valuable comments.
Always a pleasure to read your beautiful poems.