
कितने विवश थे सिंघासन और हस्तिनापुर से बंधे
भीष्म,द्रोण,कृपाचार्य,अश्वस्थामा जैसे
परमशक्तिशाली महापुरुष,
और महर्षि विदुर जैसे
महाज्ञानी भी,
जो स्वयं को मिटा तो सकते थे,
मगर अपने वचनों से पीछे हटना नामुमकिन।
वे अपनी आँखों कुल का अपमान होते देखते रहे,
गलत था दुर्योधन,
पुत्रमोह से ग्रसित थे धृष्टराष्ट्र,
शकुनि की कुटिलता,कर्ण की सोच,
सब समझते हुए भी विवश,अधर्म संग रहते रहे,
और अंत में वही हुआ जो होना था,
महाविनाश!
अब महाभारत महाग्रन्थ है,दो भाईयों की लड़ाई,
या सम्पूर्ण मानव जाति को आईना दिखाती
ईश्वर द्वारा दी गई साक्षात संदेश,
मैं तो धन्य हो गया
इसे पाकर,
मर्जी तेरी जो समझ,
मगर इतना जरूर समझ लेना,
कभी द्रौपदी जैसा कटु वचन मत बोलना,
युधिष्ठिर की तरह जुआ मत खेलना,
दुर्योधन जैसा महत्वाकांक्षी,
धृष्टराष्ट्र की तरह पुत्रमोह,
द्रोण की तरह पक्षपाती,
कर्ण की तरह कृतज्ञ,
कीचक की तरह पराई स्त्री पर बुरी नजर,
एवं दुशासन बन किसी का चीरहरण मत करना,
और मत करना भीष्म की तरह जोश में कोई वादा,
जिससे भविष्य में अधर्म एवं असत्य के
समक्ष बेबस और मौन रहना पड़े,
वरना महाभारत निश्चित है,
महाभारत सुनिश्चित है।
!!!मधुसूदन!!
Shivangi_Wadhwa says
So true…
Madhusudan Singh says
Thank you very much.
Dr Garima tyagi says
सत्य 👍👍
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।
Dr Garima tyagi says
स्वागत सर 🙏🙏
Madhusudan Singh says
🙏
tarapant says
वर्तमान को भी एक सीख बहुत खूब।
Madhusudan Singh says
जी बिल्कुल हम इतिहास वर्तमान के लिए लिखते हैं। वरना लिखने और पढ़ने का मतलब क्या अगर अपने जीवन में उससे कुछ सीख ना पाए।
tarapant says
👍
Close to heart ❤💖💓 says
Concluding part 👌👌
Madhusudan Singh says
Dhanyawad apka.
Rekha Sahay says
महाभारत वास्तव में भारत वर्ष के दो भाईयों के परिवार के बीच का युद्ध है.
आपने महाभारत की बहुत अच्छी विवेचना की है.
Madhusudan Singh says
महाभारत दो भाईयों की नही बल्कि सत्य और असत्य के बीच की लड़ाई थी। न जाने कितनी बार सत्य को असत्य का सामना करना पड़ा है और हर बार उसका रूप बदला है। कभी भाई बना,कभी साधु,कभी दैत्य। असत्य और अधर्म का कोई रिस्तेदार नही होता और ना ही किसी से उसका रिस्ता। ये मेरा मानना है।