Jindgi/जिंदगी

कलकल बहता पानी,
स्थिर मोह लिया मन मेरा,
सुदबुध खो बैठे,
थे तुम बहते पानी जैसे,
तेरे हो बैठे।।

कल तक हम थे बृक्ष सामान,
फिर भी भरा हुआ अभिमान,
कितने आँधी बनकर आये,
फिर भी हमें डिगा ना पाये,
हम थे जड़वत सील के जैसे,
विश्वामित्र भी कह लो वैसे,
फिर तूँ पास मेनका आई,
मैं सब भूल गया चतुराई,
बह गए पत्तों जैसे बृक्ष,
पिघला बर्फ के जैसे सील,
तुम्हीं में खो बैठे,
थे तुम बहते पानी जैसा,
तेरे हो बैठे।।

images

जड़वत को तूँ चाल सिखाई,
अपनी धार में लहर मिलाई,
कितने राहों में चट्टान,
बाँधें रोक चाल ना पाई,
विश्वामित्र हमारा तन,
मेनका है ये मेरा मन,
मन रे ले चल मर्जी जीवन,
तुमको दे बैठे,
थे तुम बहते पानी जैसे,
तेरे हो बैठे।।

लहर मैं तूँ है मेरी धार,
खेल है जीवन ये संसार,
ख़ुशी से जी लें पल दो पल,
छोड़ जग जाना है फिर यार,
देख आया है सागर तीर,
जहाँ आकर सोया तकदीर,
मिटे हम दोनों संग-संग,
सागर जल में खो बैठे,
थे तुम बहते पानी जैसे,
तेरे हो बैठे,
थे तुम बहते पानी जैसे,
तेरे हो बैठे।।
!!! मधुसूदन !!!

kalakal bahata paanee sthir,
moh liya man mera,
sudabudh kho baithe,
the tum bahate paanee jaise,
tere ho baithe.

kal tak ham the brksh saamaan,
kitana bhara hua abhimaan,
kitane aandhee banakar aaye,
phir bhee hamen diga na paaye,
ham the jadavat seel ke jaise,
vishvaamitr bhee kah lo vaise,
phir toon paas menaka aaee,
main sab bhool gaya chaturaee,
bah gae patton jaise brksh,
pighala barph ke jaise seel,
tumheen mein kho baithe,
the tum bahate paanee jaisa,
tere ho baithe.

jadavat ko toon chaal sikhaee,
apanee dhaar mein lahar milaee,
kitane raahon mein chattaan,
baandh bhee chaal rok na paee,
vishvaamitr hamaara tan,
menaka toon hai meree man,
jahaan toon le chal manavaan,
jeevan tumako de baithe,
the tum bahate paanee jaise,
tere ho baithe.

lahar main toon hai meree dhaar,
khel hai jeevan ye sansaar,
khushee se jee len pal do pal,
chhod jag jaana hai phir yaar,
dekh aaya hai saagar teer,
jahaan aakar soya takadeer,
mite ham donon sang-sang,
saagar jal mein kho baithe,
the tum bahate paanee jaise,
tere ho baithe,
the tum bahate paanee jaise,
tere ho baithe.

!!! madhusudan !!!

23 Comments

  • विरोधाभासी अलंकारों कि झड़ी लगा दी है आपने
    “कलकल बहता पानी,स्थिर” ~पानी का बहना और स्थिर होना
    “कल तक हम थे बृक्ष सामान,
    कितना भरा हुआ अभिमान”~ वृक्ष अपनी विनम्रता के लिए जाना जाता है, आपने अभिमानी बना दिया
    कविओं की दुनिया ही सही है..कुछ भी कर सकते हैं 😛

    • सुक्रिया अभय जी आपने इतनी बारीकी से पढ़ा और अपनी खूबसूरत प्रतिक्रिया ब्यक्त किया।मैं शुरुआत से ही सीखने ,समझने और आप सबों की मदद से अपनी कमी सुधारने को प्रयासरत रहता हूँ—-वैसे आपने ठीक ही कहा हमें शायद किसी को कुछ भी लिख देने की शायद आजादी मिली है।वैसे यहां हमारे लिखने का मतलब इस प्रकार है—-
      कलकल बहता पानी,
      स्थिर मोह लिया मन मेरा।
      जहां तक बृक्ष की विनम्रता की बात है ,उचित है मैं भी स्वाभिमानी शब्द लगाने को सोच रहा था मगर कब स्वाभिमान खूबसूरती रूपी आंधी को हराते हराते अभिमान में बदल गया पता ही नही चला जिसे मेनका ने चिकना चूर कर दिया। बस इसी को दर्शाने में बृक्ष को अभिमानी बना दिया।अगर ये अनुचित है तो आप जरूर अपनी सलाह दे साथ ही कोई उपयुक्त शब्द भी बताने का सलाह दें ।हम जरूर अमल करेंगे।

      • आप मेरी प्रतिक्रिया को नकारात्मक मत समझिये..कुछ भी लिखने की आज़ादी से मेरा मतलब कवि की स्वच्छंदता और परिकल्पना से है.. आपने विरोधाभासी अलंकार (जैसे-भीड़ में तन्हाई, चीखती चुप्पी) का सहज प्रयोग किया है.. शुभकामनायें

        • क्या कहना अभय जी।नकारात्मकता का तो सवाल ही नही हैं।बहुत अच्छा लगता है आपका इस तरह लिखना। सुक्रिया आपका आपने पढ़ा पसन्द किया और बहुत सुंदर अपनी प्रतिक्रिया ब्यक्त किया।सहृदय धन्यवाद।

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