देखो आया संकट भारी,
जूझ रही है दुनियाँ सारी,
एक अदृश्य रिपु दिल दहलाया,
मानव को ही अस्त्र बनाया,
वक्त विकट,विकराल रिपु,आ संयम अपना हम दिखलाएँ,
विश्व ससंकित,दहशत में जग,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
वक़्त नही ये द्वंद्व का नफरत छोड़,
त्याग दिखलाओ प्यारे,
अगर बचे तो फिर लड़ लेंगे,
खुद को अभी बचा लो प्यारे
छोड़ो हठ मत कर मनमानी,
धर्म कहा कब कर शैतानी,
मान जगत,रब एक,एक हम,
आ मिल कह वसुधैव कुटुम्बकम,
कह दे अल्लाह,ईश,गुरु,भगवान एक सबको समझाएँ,
व्यूह कई तोड़े टूटेगा,आओ मिलजुल दिया जलाएँ।
आज जंग चहुँओर मौत से,
बनकर वायु चली विषैली,
समाधान निश्चित निकलेगा,
सोच छोड़ जो मन में मैली,
प्राण-दीप नित बुझता पल-पल,
कैद हुआ मानव खुद घर-घर,
कर्म बुरे कुछ मेरे शायद क्रोधित रब आ उन्हें मनाएँ,
निश्चित दिल पिघलेगा उनका,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
निश्चित दिल पिघलेगा उनका,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
!!!मधुसूदन!!!

myexpressionofthoughtsblog says
Marvellous sir.. sometimes I don’t have words to express
Madhusudan Singh says
bahut bahut dhanyawad apke bahumulya tippani ke liye.
myexpressionofthoughtsblog says
My pleasure sir
Rekha Sahay says
उम्दा रचना.
Madhusudan Singh says
पुनः धन्यवाद आपका।
aruna3 says
हाँ एक दिया भी काफी है रौशनी के वास्ते।
Madhusudan Singh says
सुक्रिया आपका।
aruna3 says
Welcome.
Shantanu Baruah says
vEry beautiful –
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad apka.
Nimish says
Bahut badhiya 👌👌✨❤
इस दुनिया को सँवारना अपनी चिता रचने जैसा है
और बचना इस दुनिया से अपनी चिता से बचने जैसा है..
संभव नहीं है बचना चिता से इसलिए इसे रचो
और जब मरो तो इस संतोष से कि सँवार चुके हैं हम अपनी चिता !
~भवानीप्रसाद मिश्र
Madhusudan Singh says
धन्यवाद भाई। बहुत सुंदर पंक्तियाँ। बिना खोजे ही उपलब्ध कराया।
Madhusudan Singh says
देखो आया संकट भारी,
जूझ रही है दुनियाँ सारी,
एक अदृश्य रिपु दिल दहलाया,
मानव को ही अस्त्र बनाया,
वक्त विकट,विकराल रिपु,आ संयम अपना हम दिखलाएँ,
विश्व ससंकित,दहशत में जग,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
वक़्त नही ये द्वंद्व का नफरत छोड़,
त्याग दिखलाना होगा,
अगर बचे तो फिर लड़ लेंगे,
खुद को अभी बचाना होगा,
हठ छोड़ो मत कर मनमानी,
धर्म नही करता शैतानी,
मान जगत,रब एक,एक हम,
आ मिल कह वसुधैव कुटुम्बकम,
आ कह अल्लाह,ईश,गुरु,भगवान एक सबको समझाएँ,
व्यूह कई तोड़े टूटेगा,आओ मिलजुल दिया जलाएँ।
आज जंग चहुँओर मौत से,
बनकर वायु चली विषैली,
समाधान निश्चित निकलेगा,
सोच छोड़ जो मन में मैली,
प्राण-दीप नित बुझता पल-पल,
कैद हुआ मानव खुद घर-घर,
कर्म बुरे कुछ मेरे क्रोधित रब शायद आ उन्हें मनाएँ,
निश्चित दिल पिघलेगा उनका,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
निश्चित दिल पिघलेगा उनका,आओ मिलकर दिया जलाएँ।
!!!मधुसूदन!!!