Achraj mat karna/अचरज मत करना
अभी मरघट में जगह शेष,
वे उपलब्धियाँ गिनाने लगे,
हम घरों में कैद कोरोना से लड़ें या भूख से,
या सड़कों पर करें मौत से जद्दोजहद,उन्हें क्या,
वे अब राजनीत अपना चमकाने लगे।
कोरोना का नित्य बढ़ता ग्राफ,
बुझते दीपक,सिकुड़ते बेड,
वीरान होते घर!
और होती सिर्फ राजनीत!
ऐसा नही कि समाजसेवियों का अकाल हो गया,
ऐसा भी नही की राजनीति में सिर्फ,चोर,डकैत,
बलात्कारियों का ही अधिकार हो गया,
अब भी कुछ जमीन से जुड़े,
सुख-दुख में साथ आते,
मगर बहुतायत तो सिर्फ चुनाव में ही नजर आते,
और नजर आता उनका उदार हृदय!
देख बिगुल चुनाव के बजने लगे,
बरसाती मेंढक
जमीन से बाहर निकलने लगे,
पुनः उड़ेंगे नोटों के बंडल,शराब की थैलियाँ,
उड़ेंगी सोशल डिस्टेनसिंग की धज्जियाँ
उमड़ेंगी हुजूम,हम भी नजर आएंगे,
वे पिटेंगे ढिंढोरे खुद,हम तालियां बजाएंगे,
और लाएंगे घरों में शराब संग मौत!
थमने को कुछ भी नही थमा,
ना कोरोना,पलायन,दहशत,दर्द ना ही आँसू!
मगर उन्हें क्या!
हमें चिंता,भूख,बीमारी,रोजगार और व्यापार की,
उनकी चिंता सिर्फ तख्त,सियासत और सरकार की।
!!!मधुसूदन!!!
बहुत मार्मिक चित्रण सच में लफ़्ज़-ब-लफ़्ज़ सच्चाई बयां की है।यही हाल है राजनीति का
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
आभार 🙏
हकीकत है👍
धन्यवाद भाई।