मेरा कोई ना सहारा भगवान्,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे,
बड़ा बिचलित हुआ है इंसान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे।
तेरा ही रूप इंसान नहीं सोंचता,
जाति और धर्म में जहान को है तौलता,
मेघ,जल,सूर्य और जमीन,आसमान में,
पेड़,पहाड़,नदी तू ही है शशांक में,
प्रभु तू ही बसा है रेगिस्तान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे,
बड़ा बिचलित हुआ है इंसान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे।
शुक्ष्म हो जीव या विशाल कोई जीव हो,
तेरा ही है रूप सभी चाहे कोई जीव हो,
देख इंसान सभी जीव को मिटाते है,
ब्यर्थ का दोष एक दूजे पर लगाते हैं,
मिल धरती बनाते शमशान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे,
बड़ा बिचलित हुआ है इंसान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे।
जैसा है सोंच बना वैसा तेरा रूप है,
तेरे बगैर ना ही छांव ना ही धूप है,
कोई साकार,निराकार तुझे बोलता,
तेरा ही रूप कोई यहां वहाँ खोजता,
तू कहाँ नहीं है भगवान्,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे,
बड़ा बिचलित हुआ है इंसान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे।
कहां हैं लोग जो कुरान को हैं जानते,
गीता की सोंच कहाँ सभी पहचानते,
पढा ना वेद जो ना पढा है कुरान को,
वही बताता आज ज्ञान इस जहान को,
देख खुद ही बना है भगवान,खड़ा हूँ उस जहान में तेरे,
बड़ा बिचलित हुआ है इंसान,खड़ा हूँ मैं जहान में तेरे।
!!! मधुसूदन!!!
ThePritamBiswas says
Nice lines…
Smriti Sneha blog says
प्रार्थना का प्रारम्भ आरम्भ अन्त हर कोई समझ नहीं सकता ,ईश्वर बसतें हैं हम सबमें ईश्वरीय अंश का आभास हर कोई कर नहीं सकता।
कितने तो बस व्यस्त हैं बस यहाँ जिन्दगी की उहापोह भौतिक सुख और संसाधनों की मारामारी में……..प्रार्थना का प्यारा सा स्वरूप है
प्रेम है ,सौहार्द है , जीवनदाता को इस प्यारीे सी जिन्दगी के लिए बारम्बार प्रणाम है🙏🙏
Madhusudan says
lajwaab panktiyon ke saath pratikriyaa…..shandar..
Smriti Sneha blog says
बहुत धन्यवाद आपका🙏