Bhatkata Dharmo me Insaan
डाल बदला है तू पर तना है वही,
घर बनाया नया, पर घराना वही,
कैसी गफलत में हैं फिर भी सारे,तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
याद कर जंगली थे कभी हम सभी,
जानवर की तरह लड़ रहे थे कभी,
जीव-जंतु, नदी, बृक्ष, पर्वत, हवा,
रब दिया स्वर्ग सी खूबसूरत धरा,
मुर्ख थे खुद की मैयत बनाते रहे,
जंगली हम थे सबको मिटाते रहे,
जो मिला उसको भोजन बनाते,
नर-बलि करके भी मुश्कुराते,
देखकर ये दशा रब बताने लगे,
जंगली को दया खुद सिखाने लगे,
ज्ञान देने को धरती पर आये,
हम सभी को ओ इंसाँ बनाये,
एक हैं रब कई नाम प्यारे,
कैसी गफलत में हैं फिर भी सारे,तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
काल के साथ युग भी बदलता गया,
ज्ञान की लेख पर धूल जमता गया,
था सनातन जगत है निशानी अभी,
कैसे भ्रम में जगत के इंशां सभी,
युग बदलता गया धर्म बनता गया,
हम ना बदले ये चोला बदलता गया,
साम से दाम से दंड से भेद से,
कुछ की मजबूरियां कुछ बटे प्रेम से,
हम नदी पार उस पार सारे,
घर है बदला ना पूर्वज हमारे,
कैसी गफलत में हैं जग के सारे,तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
धर्म है जिंदगी रास्ता धर्म है,
प्रेम,ममता जहां ओ जहाँ धर्म है,
प्यार में,त्याग में,हर मधुर साज में,
सूक्ष्म जीवों के जीवन की मुश्कान में,
है दया रब वहीं प्रेम ही धर्म है,
क़त्ल मानव का कैसे बना धर्म है,
द्वन्द कैसे बढ़ा फिर जहाँ में,
क्यों आँसूं भरा इस जहाँ में,
प्रेम से देख नफरत हटा कर ज़रा,
धर्म का झूठा चोला हटाकर ज़रा,
तुम में हम हम में तुम ही हो प्यारे,
कैसी गफलत में हैं फिर भी सारे, तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
आ नफरत हटा, प्रेम हमसे बढ़ा,
धैर्य हममे है उसको ना बेदी चढ़ा,
सिर्फ रेखा बना दूजा चोला चढ़ा,
गौर से देख पायेगा अपनी धरा,
हम वही हैं वही थे जो प्यारे,
क्यों नफरत बढ़ाते हो प्यारे,
आँख अब खोल अपनों को अब ना मिटा,
क्यों दुश्मन बना उनके सारे, तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
डाल बदला है तू पर तना है वही,
घर बनाया नया, पर घराना वही,
कैसी गफलत में हैं फिर भी सारे,तेरे पूर्वज वही जो हमारे।
!!!मधुसूदन!!!
लिखना सीखें तो कोई आपसे सीखे सर
शत शत नमन हो आपको🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
bahut badi baat kah diya apne ……main bhi sikh raha hun…..sukriya pasand karne ke liye.
बहुत अच्छा संदेश लिखा
Dhanyawad apka….
Very apt post for people lost in finding religion and god in worldly limits !! Where humanity and god is within ourselves!!
lots of thanks for your appreciation.
विकास की पथ चला मानव
ये कैसा विकास है
ना अपना संस्कृति सम्हाला
ना प्रकृति भी पास है
भाई हीरा हो लेखन के
सुक्रिया भाई उत्साहवर्धन और सराहना के लिए।आपने भी बहुत बढ़िया कविता की कुछ पंक्तिया तारीफ में लिख डाला।
Awesome
Thank you very much…
just wowsome 👌👌
sukriya apka
bahut sundar kavita
dhanyawad Danish bhayee…..
Great free flowing poetry
dhanyawad apka apne pasand kiya aur sarahaa….