Kya Chand bhi kabhi Rota hoga/क्या चाँद भी कभी रोता होगा!

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कीमती वस्त्र,आभूषण
चेहरे पर रेशमी घूंघट,
और घूँघट से झलकता चाँद देख,
पुरुष क्या,नारियाँ भी आहें भरती होंगी,
कैसा होगा उसका बिछौना,
कैसा होगा घर,
वाह!
क्या किस्मत पाई है,
निश्चित ही मखमल पर सोती होगी,
कौन सोचता होगा उसे देखकर,
कि वह भी कभी रोती होगी।
दिनभर की उलझनों से इतर,
निशा के अंधेरे में,
दरवाजे को बंदकर,
तकिए में मुँह दबाए,
ताकि रोने पर कोई सिसकी ना सुन पाए,
दिल का दर्द,आँसुओं का सैलाब,
घूँघट में ही पिरोती होगी,
कौन सोचता होगा उसे देखकर,
कि वह भी कभी रोती होगी।
नित्य चाँद,तारें आते,
गोधूलि में पंछी अपने नीड़ को जाते,
झोपड़ी से आती हँसने की ध्वनि,
उसके कानों से टकराते,
मगर उसका प्रियतम कहीं दूर,
घर लौट पाने से मजबूर,
या..?
ना,ना!
ऐसा मत कहना,
वर्षों गुजर गए,
ना पता ना ठिकाना,
ना कोई खबर,
सिर्फ इंतजार!
चेहरा दमकता,ख्वाब मलीन,
नई उम्र,अभी शादी को हुए ही कितने दिन,
दर्पण आलीशान,
न जाने कैसे नित सँवरती,रातों में सोती होगी,
कौन सोचता होगा उसे देखकर,
कि वह भी कभी रोती होगी,
वह भी कभी रोती होगी।
!!!मधुसूदन!!!

“औरों की हँसी देख खुद पर गम मत करना,
कौन दुखी नही,आँखें नम मत करना।”

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