Daud/दौड़
टूटते गुम्बद,
नित टूटते मंदिर,
टूटती नही,
जाति-मजहब की दीवारें,
प्रेम से रिक्त होते दिल,
और गगन चूमती नफरत की मीनारें,
मिट गया वह भी
जिसके चलने मात्र से हिलती थी धरती,
नित मिट रहे कंस और दुर्योधन भी,
मगर मिटती नही जग से
झूठी अहंकारें।
वैसे
गिराई तो तूने भी है,
मेरे ख्वाबों का शीशमहल,
तोड़े हैं रिस्ते,यकीन,वादे,
किया है फरेब
बहुत कुछ पाने को,
फिर क्यों नही चमकते,
तेरे चेहरे पर सितारे,तेरे चेहरे पर सितारे।
!!!Madhusudan!!!
सच में बहुत अच्छी रचना 🙏🙏
सुक्रिया आपका सराहने के लिए।🙏🙏
अति सुंदर अभिव्यक्ति 👌
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
🙏😊
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है। ,
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
,👍👍
🎉आपकी कविताओं के भाव कवि दिनकर की रचनाओं सा उद्वेलित भाव रखतीं हैं।
क्या बात है। 🙏🙏
बहुत ख़ूब👌
bahut bahut dhanyawad apka.
वाह..!👌🏻👌🏻👌🏻
Dhanyawad bhayee.