GURU-SHISHYA/गुरु-शिष्य

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लोग कहते हैं
खून का रिस्ता सभी रिश्तों से गाढ़ा होता है
मगर कुछ रिश्ते ऐसे भी होते हैं
जो खून से नहीं बने होते
फिर भी उनकी घनिष्ठता,अपनत्व और त्याग
खून के रिश्तों से तनिक भी कम नहीं।
ऐसे ही रिश्तों में से एक रिश्ता है
गुरु और शिष्य का।
गुरु अपना सर्वश्व भूल शिष्य को
चरम पर पहुंचाने के लिए
कुछ भी कर जाता है
तो शिष्य
चरम पर पहुँचने के बाद भी
गुरु को देख उनके पैरों पर गिर जाता है।
उसके दिल की अनुभूति को
शब्दों में बयाँ करना आसान नहीं
फिर भी,एक तरफ
जहाँ गुरु के त्याग के किस्से
किताबों में भरे पड़े हैं
तो दूसरी ओर
शिष्य के समर्पण और त्याग की कहानियाँ
दिल को झकझोर देती है।
सौभाग्यशाली है वे लोग जिन्हें अपने जीवन में,
ऐसे प्रेम करनेवाले गुरु या शिष्य का,
सानिध्य मिला हो।
मैं भी एक शिष्य के रूप में अपने गुरु को शत-शत नमन करता हूँ|
!!!मधुसूदन!!!

उन्हीं कहानियों में से एक है गुरुभक्त आरुणि की कहानी:—-Click here

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