KALAM/कलम

जो लब से ना हम बोल सके,पैगाम उन्हें पहुँचा दो ना,
ऐ कलम मेरी जज्बातों को,इन पन्नों पर बरसा दो ना।
लिख दो धड़कन क्या कहती है,
आँखें क्यों ब्याकुल रहती है,
लब पर है किनके नाम मेरे,
लिख दो सारे पैगाम मेरे,
लिख नशा नही है लाखों में,
जो नशा है उनकी बातों में,
उन बातों में हम डूब गए,
लिख दो खुद को ही भूल गए,
जो बंद पड़े पट वर्षों से,
उनके खातिर ही खोल दिया,
लब माना थे खामोश मगर,
सब नजरों ने है बोल दिया,
क्यों इतना वे नादान बने,
क्यों हमसे वे अनजान बने,
क्या नींद उन्हें आ जाती है,
या याद मेरी तड़पाती है,
क्यों दौड़े-दौड़े आते वे,
मुझ तक आकर रुक जाते वे,
क्या वे भी कुछ ना कह पाते?
मुझ जैसे ही क्या शरमाते?
क्या उनको भी है मर्ज यही,उत्तर उनसे मंगवा दो ना,
ऐ कलम मेरी जज्बातों को,इन पन्नों पर बरसा दो ना।

ऐ कलम तुम्हारी धार है क्या,
उसके सम्मुख तलवार है क्या,
कितनो को धूल चटाए तुम,
कितनो को तख्त दिलाए तुम,
तुमने ही गीता ज्ञान लिखा,
गुरुग्रन्थ बाईबल,कुरान लिखा,
तुमने ही लिखे वेद,पुराण,
तुमने ही लिखे नव विज्ञान,
चल फिर से अलख जगाने को,
पागल जग को समझाने को,
नफरत को पुनः मिटाने को,
लिख क्यों ये फिर शैतान बने,
क्यों अल्लाह खुद भगवान बने,
क्यों भक्षक सारे जीवों का,
सब मिलजुल कैसे बन बैठे,
जो रक्षक मेरे वृक्ष तमाम,
क्यों उनके दुश्मन बन बैठे,
पूछ नदियाँ,पोखर सूख रहे,
पानी फिर कहाँ से लाएंगे?
विकसित बनने की होड़ बहुत,
क्या प्राण-वायु उपजाएँगे?
उनकी करतूत की शान लिख,
कैसे रौशन श्मशान लिख,
है कब्रगाह में जगह कहाँ,
पूछो करना है दफन कहाँ,
इनको ज्ञानी या मूर्ख कहूँ,
मानवता का रिपु-दुष्ट कहूँ
या कहूँ निशाचर मैं इनको,कुछ भी उत्तर मंगवा दो ना,
ऐ कलम मेरी जज्बातों को,इन पन्नों पर बरसा दो ना,
ऐ कलम मेरी जज्बातों को,इन पन्नों पर बरसा दो ना।
!!!मधुसूदन!!!

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