KASURWAR KAUN/कसूरवार कौन?
कभी कहते जिसे शरबती आँखें,
अब नीर भरा समंदर खारा है,
जिससे रिसते नीर,
हरपल,
दोष किसका,
उनका तो नही,
सब कुसूर हमारा है।
हर मौसम ऋतुराज कलतक,
मैं भी मधुमास से कम नही,
पवित्र ऐसे जैसे कोई तीर्थ,
मेरे समान निर्मल गंगा,जमजम नही,
दौड़े चले आते ऐसे जैसे वर्षों का कोई प्यासा,
मैं ही थी मीरा उनकी मैं ही थी राधा,
खिली पंखुड़ियों सी अधरें
टपकते मकरन्द,
कोयल सी बोली
बदन बिखेरती सुगन्ध,
न जाने वे क्या-क्या
यूँ ही अनवरत बखान करते,
गेसुओं संग अठखेलियाँ करती उंगलियाँ
और हम उनके शब्दों में खोए मन्द मन्द मुस्कान भरते,
एक दौर था,एक दौर है,शहर में आग लगी,
सारे जहाँ को खबर,
मगर वे बेखबर,
अनजान,
कैसे?
कुसूरवार मैं,
समर्पण,विश्वास और प्रेम किया,
और वे छल!
हम भावनाओं में खोए,
उनकी ख्वाबों को साकार करते रहे,
वे करते रहे फरेब और हम उसे प्यार समझते रहे,
आँखें बंद कर तुम भी किसी पर ऐतबार मत करना,
टिस कितना बताना मुश्किल,सुनने का प्रयास मत करना,
प्रेम ही जीवन,प्रेम ही दौलत,प्रेम बिन सब फीका,
फिर कैसे कहूँ कि तुम किसी से प्यार मत करना।
!!!मधुसूदन!!!
बहोत सुंदर तरीके लिखा है… वाह 👌👌
🙏🙏
शानदार लेखन ❤😉😊😘
कल्पना और वास्तविकता को जोड़ता
मेरा शरीर पुल है,
तुम्हे आना होगा
मेरी तपती पीठ को रौंदते हुए,
तुम्हारे तलुए जानेंगे
मेरी वास्तविकता का स्वाद
अरे भाई!
किस नीरनिधि से चुराकर ले आते
इन मोतियों जैसे बेशकीमती पंक्तियों को!
न जाने
वह सागर कितना गहरा,
और नीर कितना खारा होगा,
निश्चित वो भी छल का मारा होगा।
मिल जाता अज्ञात लेखन😁
ऑनलाइन भी बिल्कुल सागर है साहित्य का…❤
वो तो है। चाहे जितना निकालो कम नही होता।🙏
🙏
Good mrng प्रणाम😉
🙏🙏
नीरनिधि से खोजकर ☺
Bahut khoob
धन्यवाद आपका।
क्या बात है! सुंदर अभिव्यक्ति भरी रचना.
पसन्द करने के लिए धन्यवाद आपका।
प्रेम पर बेहतरीन प्रस्तुति👌
सराहने के लिए धन्यवाद आपका।
बहुत खूब।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Most welcome🌻🌻🌻🌻
अति सुंदर
धन्यवाद आपका।
Behatareen rachna. Waah
Bahut bahut dhanyawad pasand karne ke liye.