जब भी उठती कलम चिल्लाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज।
महिमामंडित गद्दारों का करते करते,
शब्द बने बोझिल,शब्दों को सहते सहते,
ऊब गया, खुद पर शर्माता कोरा कागज़,
जब भी उठती कलम चिल्लाता कोरा कागज।
लाखों खोए वीर वतन पर मिटनेवाले,
नहीं यहाँ पर कोई उनपर लिखनेवाले,
कब आएंगे वे दिन,कब वो कवि बता दे,
बलिदानी के नाम शब्दों की झड़ी लगा दे,
जब बरसेंगे देशप्रेम के शब्द मनोहर,
जब तरसेंगे मसि बनने को ताल सरोवर,
तब हर्षित होगा बतलाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज।
!!!मधुसूदन!!!

Rekha Sahay says
लाजवाब !
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद।
gdutta17 says
Bahut hi sundar kavita hai…
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad apka.
Zoya Ke Jazbaat says
सुन्दर भावाभिव्यक्ति👌🙏
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद।🙏
(Mrs.)Tara Pant says
दिल से ।🙏
Madhusudan Singh says
धन्यवाद।🙏
काव्याक्षरा says
ओजपूर्ण रचना….
Madhusudan Singh says
सुक्रिया आपका सराहने के लिए।
ShankySalty says
निशब्द कर दिया आपने🙏😊
Madhusudan Singh says
धन्यवाफ आपका।
AnuRag says
*सर
AnuRag says
बहुत ही खूबसूरत हर जी ✍️🙏
Madhusudan Singh says
bahut bahut dhanyawad apka………
Rajiv Sri... says
बेहतरीन भाव सर..!👌🏻👌🏻👌🏻
नतमस्तक😌🙏🏻
Madhusudan Singh says
ये आपके कृति का एक पद भाग है। धन्यवाद आपका।🙏🙏
Ameet Kothari says
Wah Bhaisahab
Madhusudan Singh says
धन्यवाद भाई जी।🙏🙏