Kora Kagaj/कोरा कागज
जब भी उठती कलम चिल्लाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज।
महिमामंडित गद्दारों का करते करते,
शब्द बने बोझिल,शब्दों को सहते सहते,
ऊब गया, खुद पर शर्माता कोरा कागज़,
जब भी उठती कलम चिल्लाता कोरा कागज।
लाखों खोए वीर वतन पर मिटनेवाले,
नहीं यहाँ पर कोई उनपर लिखनेवाले,
कब आएंगे वे दिन,कब वो कवि बता दे,
बलिदानी के नाम शब्दों की झड़ी लगा दे,
जब बरसेंगे देशप्रेम के शब्द मनोहर,
जब तरसेंगे मसि बनने को ताल सरोवर,
तब हर्षित होगा बतलाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज,
सिसक सिसककर दर्द सुनाता कोरा कागज।
!!!मधुसूदन!!!
लाजवाब !
बहुत बहुत धन्यवाद।
Bahut hi sundar kavita hai…
Bahut bahut dhanyawad apka.
सुन्दर भावाभिव्यक्ति👌🙏
बहुत बहुत धन्यवाद।🙏
दिल से ।🙏
धन्यवाद।🙏
ओजपूर्ण रचना….
सुक्रिया आपका सराहने के लिए।
निशब्द कर दिया आपने🙏😊
धन्यवाफ आपका।
*सर
बहुत ही खूबसूरत हर जी ✍️🙏
bahut bahut dhanyawad apka………
बेहतरीन भाव सर..!👌🏻👌🏻👌🏻
नतमस्तक😌🙏🏻
ये आपके कृति का एक पद भाग है। धन्यवाद आपका।🙏🙏
Wah Bhaisahab
धन्यवाद भाई जी।🙏🙏