MAA-BAAP/माँ-बाप

एक दौर था जब थकान किसे कहते मालूम नही था। कदम चलते नही,उड़ते थे। बाईस,तेईस की उम्र तब मैं दिल्ली में था। जहाँ एक वाक्या हुआ जिसने जीवन के कई सवालों के जवाब दे गए। मैं वहाँ किसी कम्पनी में काम करता था जहाँ हम नौजवानों के बीच लगभग एक साठ वर्ष के बुजुर्ग को काम करते देख मन में अचानक कुछ प्रश्न कौंधने लगे। फिर क्या ,मैं उनके नजदीक गया तथा नमस्कार कर हाल समाचार पूछते हुए बुदबुदाया। अंकल क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ?
उन्होंने कहा:- हाँ हाँ,क्यों नही! पूछो बेटे।
अंकल आप इस उम्र में ये भागदौड़ वाला काम क्यों करते हैं? क्या आप आभाव के दौर से गुजर रहे हैं? क्या आपके बच्चे आपके साथ नही? आदि-आदि न जाने कितने सवाल उनसे एक साँस में पूछ बैठा।
उन्होंने बहुत ही सहज भाव से मुस्कुराते हुए कहा- नही बेटे,कोई दिक्कत नही। हम पेंशनभोगी हैं। ईश्वर की कृपा से भरा पूरा परिवार है। दिल्ली में घर है अपना, दो बेटे,एक बेटी भी है। पढ़लिख कर बेटे दोनों अमेरिका और इंग्लैंड चले गए और बेटी दिल्ली में शिक्षक है। फिर सजल आँखों से कहा कि बेटी तो आती जाती है मगर अब बेटे नही आते। हाँ उनसे बातें जरूर होती है।
मैंने फिर पूछ बैठा:- जब सारे बच्चे आपके खुशहाल हैं, आपको पेंशन भी मिलता है फिर आप क्यों और किसके लिए इस उम्र में अब ये काम करते हैं?
छलकते आँसुओं को पोछ मुस्कुराते हुए उन्होंने पुनः जवाब दिया:- पोते,पोतियों के लिए। ताकि कभी बेटों के पास उनके लिए पैसे कम पड़ जाए फिर जरूरत पर उन्हें कहीं और भटकना ना पड़े। मेरे पास पैसे होंगे तो वे जरूर आएंगे। और वे जब भी आएंगे तब हम ये कमाया हुआ पैसा उन्हें सौंप देंगे।
मैं उनके इस जवाब पर चुपचाप उन्हें और उनके अंदर के प्रेम को देखता रहा। आँसू तो तब मेरे भी छलक गए थे। कुछ देर बाद वे अपने काम पर निकल पड़े और मैं अपने काम पर। मगर हमें उसदिन ये बात जरूर समझ आ गई कि जो माँ-बाप अपने बच्चों को बेहद प्यार करते हैं, वे कभी नही थकते और ना ही कभी कोई काम करने में उन्हें कोई शर्म महसूस होती है।
सच, जो माँ-बाप होते हैं वे कभी अपने लिए नही जीते।
!!!मधुसूदन!!!

15 Comments

  • मैंने पढ़ा। बार-बार पढ़ा। दुख हुआ। बुज़ुर्गवार के साथ सहानुभूति भी हुई। फिर विचार आया कि दोष क्या केवल बच्चों का है? क्या उन्हें अच्छे संस्कार मिले थे अपने माता-पिता से? शायद नहीं। बच्चे अपने बड़ों को देख कर सीखते हैं। हमारा स्वयं का आचरण अच्छा होगा तो बच्चों का भी अच्छा होगा। इस संदर्भ में मैं ‘आधा कम्बल’ शीर्षक से एक छोटी सी कथा अपनी ब्लॉगसाइट में डालना चाहता हूँ। यदि आपको आपत्ति ना हो तो क्या मैं उसमें आपका और आपकी कथा का ज़िक्र कर सकता हूँ? यदि आपको तनिक भी आपत्ति हो तो मैं ऐसा नहीं करूँगा।

    • नही पता हमें संस्कार उन्होंने कैसा दिया अपने बच्चों को। परन्तु उनके बातचीत,वयवहार को देख उनके द्वारा दिए गए संस्कार झलक रहे थे। इंसान समय और परिस्थिति का दास होता है। खैर जो भी हुआ दुखद है। आप अगर इसे अपनई रचना में इसे शामिल करना चाहते हैं तो बेहिचक शामिल कीजिये। कोई आपत्ति नही होगी। धन्यवाद आपका पढ़ने और साझा करने के लिए।🙏🙏

      • मेरी बिटिया को दो साल पहले दसवीं में स्कूल की ओर से social activity के लिए वृद्ध आश्रम में लेकर गए थे ,वहाँ पर पूरा दिन व्यतीत करना व उन्ही के संग दोपहर का भोजन भी करना था।
        जब वह घर आयी तो मेरे गले लग रोने लगी।
        मेरे पूछने पर उसने वहाँ देखी गई परिस्थितियों के बारे में बताया ।
        वृद्ध आश्रम में रहने वालों ने उन्हें अपने बच्चों के बारे में बताया कि उनके बच्चों ने कैसे उन्हें
        अकेला छोड़ दिया ओर कुछ तो विदेश में जाकर रह रहे आ,कभी मिलने भी नहीं आते,
        यह बताते हुए उनकी आखों से आँसू बह रहे थे ,
        कुछ वृद्धजन मानसिक संतुलन खो बैठे थे।
        उसने मुझे बोला कि वह ऐसा नहीं करेंगी ।
        पहली बार उसने जीवन का बुरा पहलू देखा ।

        • बहुत दुख होता है ऐसा देखकर। जो माँ बाप अपने बच्चों की गंदगी साफ करते हैं, उनके जन्म के साथ ही खुद की जरूरतें,श्रृंगार सब भूल जाते हैं,खून पसीना एक कर उनके लिए जमीन बनाते हैं। उन्हीं को उनके बच्चे कैसे इस हाल में छोड़ जाते हैं। सच कहा यह जीवन का एक बहुत ही बुरा मगर यथार्थ है। बहुत बहुत धन्यवाद अपना अनुभव साझा करने के लिए।🙏

  • आँखों में आँसू आ गए और दिल कि धड़कन बढ़ा दिया आपने 🙏🙏
    हर बार कि तरह इस बार भी आपने निशब्द कर दिया🙏🤗

    • बहुत बहुत धन्यवाद आपका।भावनाओं को समझा। सुक्रिया।🙏🙏

  • मर्मस्पर्शी… और यथार्थ भी..!

    ईश्वर का प्रतिरूप होते हैं माँ-बाप🙏🏻😌

    • बहुत बहुत धन्यवाद आपका। बबिलकुल सही कहा आपने।🙏🙏

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