Murkh hain hum achchha hai/मूर्ख हैं हम अच्छा है।

जिनके पास दौलत अकूत,
क्यों ना कमाए वे
उसे चोरी और फरेब से,
बुद्धिमान वही,
मगर उन्हें सुकून कहाँ,
ठहाके लगाते कब वे,
माना हम मूर्ख,
जिंदगी की लगी पड़ी
मगर कल्पनाओं में खोए,
यूँ ही अकारण निरंतर लिखते-पढ़ते,
माना दौलत नही हमारे पास,
मगर झूठे नही,ना ही मक्कार हम,
सुकून से सोते,हँसते-हँसाते,
हम औरों को रुलाते कब हैं,
कब दिखाते अभाव,
हम नीर बहाते कब हैं?

!!!मधुसूदन!!!

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