NASHA/नशा
नशे से भरी दुनियाँ,
जहाँ कुछ नशा ऐसी,
जो चढ़ती नही,
और कुछ,
चढ़ जाए फिर उतरती नही,
चाहे क्यों ना लुप्त हो जाएँ सूरज,चाँद,सितारे,
क्यों ना बुझ जाएं सारे दीप,
हो जाएं क्यों ना
दुनियाँ से अलग,अकेला,
जहाँ ना हो कोई रोकनेवाला,
ना ही अपना कोई मीत,
जहाँ घर क्या,
भरा हो क्यों ना,
तालाब भी महंगे शराब से,
फिर भी नामुमकिन है उबर पाना
उसके ख्वाब से।
!!!मधुसूदन!!!
अपने प्रिय ब्लॉगर jiddynidhi की रचना से प्रेरणा मिली कुछ लिखने को।
Aapke lekani mein kuch hai …pad kar hi nasha sa hona Laga – bahut hi nashela.
Kya baat hai…… Bahut bahut dhanywad apka.🙏
वाह…..बहुत ही उम्दा ❤
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए।
Wah wah. Kya baat hai… Bahut umda 💯👍
Punah dhanyawad apko.🙏
वाह सर, 👌🏻👌🏻👌🏻
सहृदय धन्यवाद।🙏
वाह सर जी , बेहतरीन ✍️💕💕 बेहद खूबसूरत लेखन ✍️
अच्छा लगा आपलोगों से बहुत दिनों बाद मिलकर। धन्यवाद आपका।
🙏🙏
शब्दों के साथ व्यक्तव्यों तक नशा बना रहे,नशेमान…
बहुत बहुत धन्यवाद सर।🙏🙏
आभार
bohat umda Madhusudanji
बहुत बहुत धन्यवाद आपका। इस संकट की घड़ी में स्वयं को बचाए रखिये। स्वस्थ्य रहिए।
Aap bhi apna dhayan rakhiyega madhusudanji, yunhi muskuratey rahiye aur apne lekh hum sabh k saath bantey rahiye.
जी, कोशिश रहेगी।
बेहद सुंदर 💕😍
बहुत बहुत धन्यवाद।