PAWAN BHUMI/पावनभूमि
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अपना उत्तरप्रदेश।
जहाँ कण-कण में कृष्ण,
जहाँ जन-जन में राम,
जहाँ घर-घर में बसते महेश,
वो है उत्तरप्रदेश,अपना उत्तर प्रदेश।
जहाँ राधा का वास,
जो माँ सीता का खास,
जिसका मिथिला,बिहार से है नेह,
वो है उत्तरप्रदेश,अपना उत्तरप्रदेश।
द्वार दक्षिण वतन का अवध से जुड़ा,
भूल पायेगा क्या कृष्ण को द्वारका,
जहाँ नरसिंह हुए,भक्त प्रह्लाद भी,
सूर,तुलसी हुए,संत रविदास भी,
सारे हिन्दुस्तान का स्नेह,
वो है उत्तरप्रदेश,अपना उत्तरप्रदेश।
जो ऋषियों की पावन धरा है,
जिसने भगीरथ सा सुत को दिया है,
जिसने संकट से जग को बचाया,
वही संकट में अब घिर गया है,
गर्व हमको जो
माटी है अपना गुमान,
जिस मिट्टी में गीता,
रामायण,पुराण,
वहीं मिटता निशान,
हाय गुम बैठे राम,
चुप हलधर के संग में देवेश,
हाय उत्तरप्रदेश,अपना उत्तरप्रदेश।
!!!मधुसूदन!!!
वो है उत्तरप्रदेश,अपना उत्तर प्रदेश से हाय उत्तरप्रदेश,अपना उत्तरप्रदेश तक आ गए।
अपनी संस्कृति और सभ्यता हम भुल रहे है इसलिए आपको एैसा लिखना पड़ा।
बिल्कुल। दर्द होता है मिटते धरोहरों एवं दूर होते संस्कृति से अपनो को देखकर। कल सबके घरों में रामायण पढा जाता था अब कोई पलटकर भी नही देखता।
सुक्रिया आपका पसन्द करने और सराहने के लिए।
अति उत्तम सर 👍
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
स्वागत सर 🙏
सर कविता ही आपकी बहुत अच्छी है तो पसंद ना करने का तो सवाल ही नहीं होता है |
🙏🙏