देखा दुख ना जीवन में वह सुख की कीमत क्या जाने,
जले पाँव ना धूप में जिनके छाँव की कीमत क्या जाने,
क्या जाने माँ-बाप की कीमत,जिनके सिर पर हाथ सदा,
सिर पर बाप का हाथ नहीं वो कीमत उनका पहचाने।
वैसे तो कई रिश्ते होते अपने इस सारे संसार में,
मगर बाप के रिश्ते का कोई तौल नहीं संसार में,
माँ लाती संसार में,पापा ये संसार दिखाता है,
माँ देती है जीवन,जीना बाप हमें सिखलाता है,
गिरने से माँ हमें बचाती,उठना पिता सिखाता है,
संस्कार माँ भरती हममे,उड़ना बाप सिखाता है,
बिन बोले अरमान समझता,चिंता खुद कभी ना करता,
फटे पैर की फिक्र नही खुद की,उसका दुख ना जाने,
सिर पर बाप का हाथ नहीं वो कीमत उनका पहचाने।
अपने हिस्से नफरत रखता,डाँट में ढील नहीं करता,
भाग्य बदलने की खातिर वो,प्रेम विरह जलते रहता,
अनुशासन मेंं कड़क बर्फ सा दिल का वो शहजादा है,
जीवन ख़ाक बना खुद का,मंजिल मुझको दिखलाता है,
साथ खड़ा दिन,रात बाप,फिर भी कीमत ना पहचाने,
सिर पर बाप का हाथ नहीं वो कीमत उनका पहचाने।
जब से मैं मुस्कान भरा था तब से रोना छोड़ दिया,
खटते खुद दिन रात,खुशी में मेरे सोना छोड़ दिया,
खुद सोता खलिहान,शान से बच्चों को जो रखता है,
कैसे कुछ खुदगर्ज उसे वृद्धाश्रम रख खुश रहता है,
मंदिर में पकवान चढ़ाता,धर्मस्थल निशदिन वह जाता,
मगर भूख से व्याकुल घर में ही बैठा रब ना पहचाने,
सिर पर बाप का हाथ नहीं वो कीमत उनका पहचाने।
!!! मधुसूदन !!!
ShankySalty says
बहुत ही पिड़ादायक शब्द है साथ ही एक अद्भुत प्रेम भी छुपा है🙏🙏🙏
Madhusudan Singh says
धन्यवाद उस पीड़ा और प्रेम को समझने और रचना सराहने के लिए।🙏🙏
Zoya_Ke_Jazbaat says
लाजवाब👌
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।
shubha Mishra says
अप्रतिम
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad.
Sikiladi says
A beautiful dedication to Father.
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad apka sarahneey ke liye.
Nimish says
उत्कृष्ठ लेखन मज़ा आ गया 🌼💞☺👌
कही पढ़े थे आज
बरगद की गहरी छांव जैसे,
मेरे पिता।
जिंदगी की धूप में,
घने साये जैसे मेरे पिता।।
धरा पर ईश्वर का रूप है,
चुभती धूप में सहलाते,
मेरे पिता।
बच्चों संग मित्र बन खेलते,
उनको उपहार दिला कर,
खुशी देते।
बच्चों यूं ही मुस्कुराओं की
दुआ देते मेरे पिता।।
संकट में पतवार बन खड़े होते,
आश्रय स्थल जैसे है मेरे पिता।
बूंद बूंद सब को समेटते,
अंधेरी में देकर हौसला,
कहते मेरे पिता।।
तुम को किस का डर है,
गमों की भीड़ में,
हंसना सिखाते,
मेरे पिता।
और अपने दम पर,
तूफानों से लड़ना,
किसी के आगे तुम नहीं झुकना,
ये सीखलाते मेरे पिता।
परिवार की हिम्मत,
और विश्वास है,
उम्मीद और आस की,
पहचान है मेरे पिता
Madhusudan Singh says
धन्यवाद। हमें भी बहुत बढ़िया लगा ये कविता।