Qaidi/कैदी
ऊँची चाहरदीवारी,जड़े ताले किवाड़
जहाँ पग-पग खड़े पहरेदार देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
झरोखे से खुला आसमान देखते हैं।
चुनकर जिसे मन ही मन हमने ऐंठा,
सच है वही तख्त पर आज बैठा,
फिर क्यों हम खुद को बेहाल देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
झरोखे से खुला आसमान देखते हैं।
महंगी बढ़ी घर में रोती है सजनी,
उजड़ा व्यापार भिन्न कथनी और करनी,
वादों का विस्तृत भंडार देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
झरोखे से खुला आसमान देखते हैं।
बेबस कृषक,मजदूर फटेहाल,
बुरे नारी के दिन बुरे हाल रोजगार,
कहने को केवल हुकूमत है अपनी,
अडानी,अम्बानी की सरकार देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
फिर भी खुला आसमान देखते हैं।
जातीय बिसात पर सजती सियासत,
नफरत में लिप्त राजनीत के विशारद,
सबकी एक सोच और चाल देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
फिर भी खुला आसमान देखते हैं।
शिकवे बहुत और शिकायत भी तुमसे
जाएं तो जाए कहाँ दूर तुमसे,
किश्ती फँसी मजधार में वतन के,
दूजा ना और पतवार देखते हैं,
कैदी हूँ,कैद से निकलना है मुश्किल,
फिर भी खुला आसमान देखते हैं।
!!!मधुसूदन!!!

बहुत सुन्दर आज के परिवेश का चित्रण
पुनः आभार आपका सराहने के लिए।
glad to read your poems after long time sir.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने और सराहने के लिए। समयाभाव में कुछ लिख नही पा रहे हैं।
सरकार ख़ाली पेट की पगार नहीं बढ़ाती, व्यवस्था नहीं करती, वह ख़ाली दिमाग़ों की व्यवस्था करती है, उन्हें ऊँचा उठाती है।
–शरद जोशी
😃❤✌
बेहतरीन पंक्तियाँ। खोज खोजकर लाते हैं आप। कमाल।
Reality❣
Thank you very much.
Sundar कविता आज के परिदृश्य
में
आपकी किताब पढ़ रहा था 3री बार …एक नई बात यह जानी की आप की अधिकतर कविताए 2 से 3 पेज तक आती …मैं 1 पेज से ज्यादा नही लिख पाता😄😄😥
इतनी लंबी और अच्छी कविता कैसे लिखे ?? राज बताए दोस्त 😃😃😅😅❤
पहले तो कविता आपको पसंद आ रही उसके लिए तहेदिल से सुक्रिया। दूसरी भाई हम लिखना चाहें तो एक पंक्ति भी लिखना मुश्किल। ये कैसे लिखा जाता है हमें भी समझ नही आता।
Pranam daddu
इसका उत्तर खूब खोजा और अंत मे पाया
विचार आते हैं
लिखते समय नहीं,
पत्थर ढोते वक़्त
पीठ पर उठाते वक़्त बोझ..
~मुक्तिबोध
एकदम सटीक पंक्तियाँ।👌👌
Wow… पूरे देश की व्यथा का लघु चित्रण। 🙏🙏
पसन्द करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Apka aashirwad banaye rakhe 🙏🙏
Pain naturally expressed in it.
Happy to read this poem!
Thank you very much for your valuable comments.