वह पेड़ जिसपर कल झूला करते, पगडंडी,ईख का खेत,अमरूद की डाली सबकुछ आज भी वैसा का वैसा है, बदले तो गाँव की गलियाँ भी नही, जिसमें कल दौड़ा करते, मगर कल की तरह उनमें रौनक नही दिखती, सबकुछ उजड़ा,उजड़ा सा नजर आता है, ऐसा क्यों? कहीं चकाचौंध में खुद तो नहीं बदल गए । !!!मधुसूदन!!! vah ped ...