
सजल नैन,
बालम परदेस,
दशा डराए।
बंद शहर,
कोरोना का कहर,
नींद न आए।
अस्थिर मन,
हिमालय सा अटल,
किसे दिखाएँ।
आह!नियति,
संकट में है प्राण,
कोई बचाए।
रब की पूजा,
करते निशदिन,
चैन ना आए।
बंद झरोखे,
गरजते बादल,
हवा डराए।
ढाढ़स देते,
आएगा मधुमास,
लोग जो आए।
अकेलापन,
अपनो की है भीड़,
कौन हँसाए।
!!!मधुसूदन!!१
Mahavish says
बेहतरीन
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत सुक्रिया आपका सराहने के लिए।🙏
Shree says
सुंदर रचना 👌👌👍
Madhusudan Singh says
पुनः धन्यवाद सराहने के लिए।
aruna3 says
वो सुबह कभी तो आयेगी।
Madhusudan Singh says
Sukriya apka.
ShankySalty says
धड़कन बढ़ा देते हो आप सर जी🙏🙏🙏
शब्दों में जान भर देते हो। जैसे जलेबी के हर कोने में रस होता है वैसे ही आपकी कविता में है। जिसे पढ़ “वाह” ही निकलता है😄😄😄
Madhusudan Singh says
आपकी तारीफ भी कुछ कम नही। सोने पर सुहागा बनाती हुई। एक साथ बहुत बहुत धन्यवाद।
Shantanu Baruah says
loved it
Madhusudan Singh says
Dhanyawad apka.