Ummid/उम्मीद
बंद क्यों ना हो जाए,किवाड़ सब जमाने का,
द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना यारों,
गिरते दरख़्त कई आँधियों के आने से,
बीज हम दरख़्त बन सजेंगे फिर बताना यारों,
जंग हर कदम कदम पर जिंदगी में जीत भी,
छटेगा अँधेरा दीप खुद से ना बुझाना यारों,
द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना यारों।
!!!मधुसूदन!!!
Very very nice
बहुत बहुत धन्यवाद।
👌🏻👌🏻
आपकी प्रत्येक रचना अत्यंत रुचिकर होती है।
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
इंसान उम्मीदों से बंधा
एक जिद्दी परिंदा है
जो घायल भी उम्मीदों से है
और
जिंदा भी उम्मीदों पर है।
Bahut sundar ❤😃🌼
क्या बात है पहले आपकी पंक्तियों की तारीफ करना चाहूँगा ततपश्चात इस प्रतिक्रिया का जिद्दी होने का भी जो आखिरकार आ ही गया।
ऊँची चाहरदीवारी,
लोहे के दरवाजे,
जिन पर जड़े बड़े बड़े ताले,
अनगिनत पहरेदार,
हाँ
कैदी हूँ,
निकलना मुश्किल,
फिर भी आसमान देखते हैं,
माना तख्तो-ताज पर बैठा वही
जिसे चुना हमने
मगर
हिन्द में
अडानी,अम्बानी की सरकार देखते हैं।
“बीज हम दरख़्त बन सजेंगे फिर”
उम्मीद और विश्वास से ओत प्रोत! बहुत सुन्दर लेखन !
बहुत बहुत धन्यवाद सर।🙏🙏
Bahut Khoob, na-umeedi se umeed ki aur….
जी बिल्कुल । बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
आपकी पंक्तियाँ अटल जी कि याद दिला दि “आओ फिर से दिया जलाए”
ज़िंदगी में उम्मीद का दीपक जरूरी है🌺😊
ये आपको ही समर्पित है।