बंद क्यों ना हो जाए,किवाड़ सब जमाने का,
द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना यारों,
गिरते दरख़्त कई आँधियों के आने से,
बीज हम दरख़्त बन सजेंगे फिर बताना यारों,
जंग हर कदम कदम पर जिंदगी में जीत भी,
छटेगा अँधेरा दीप खुद से ना बुझाना यारों,
द्वार जिंदगी का कभी खुद से ना लगाना यारों।
!!!मधुसूदन!!!

Shree says
Very very nice
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद।
Akansha Yadav says
👌🏻👌🏻
(Mrs.)Tara Pant says
आपकी प्रत्येक रचना अत्यंत रुचिकर होती है।
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Nimish says
इंसान उम्मीदों से बंधा
एक जिद्दी परिंदा है
जो घायल भी उम्मीदों से है
और
जिंदा भी उम्मीदों पर है।
Bahut sundar ❤😃🌼
Madhusudan Singh says
क्या बात है पहले आपकी पंक्तियों की तारीफ करना चाहूँगा ततपश्चात इस प्रतिक्रिया का जिद्दी होने का भी जो आखिरकार आ ही गया।
ऊँची चाहरदीवारी,
लोहे के दरवाजे,
जिन पर जड़े बड़े बड़े ताले,
अनगिनत पहरेदार,
हाँ
कैदी हूँ,
निकलना मुश्किल,
फिर भी आसमान देखते हैं,
माना तख्तो-ताज पर बैठा वही
जिसे चुना हमने
मगर
हिन्द में
अडानी,अम्बानी की सरकार देखते हैं।
Ravindra Kumar Karnani says
“बीज हम दरख़्त बन सजेंगे फिर”
उम्मीद और विश्वास से ओत प्रोत! बहुत सुन्दर लेखन !
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद सर।🙏🙏
Sikiladi says
Bahut Khoob, na-umeedi se umeed ki aur….
Madhusudan Singh says
जी बिल्कुल । बहुत बहुत धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
Shanky says
आपकी पंक्तियाँ अटल जी कि याद दिला दि “आओ फिर से दिया जलाए”
ज़िंदगी में उम्मीद का दीपक जरूरी है🌺😊
Madhusudan Singh says
ये आपको ही समर्पित है।