Vikas ya Vinash/विकास या विनाश

विकास रुक गई या विनाश,
मुद्दतों बाद आसमान साफ,वृक्ष धूल मुक्त,
शांत वातावरण,शोर मुक्त बयार,
चिड़ियों के झुंड उन्मुक्त उड़ते,
मनमर्जी सड़कों पर टहलते,
ऐसी शांति को देख
जंगली जीव भी हरकत में आए,
जंगलों को छोड़ कुछ जीव मानो दूत बन,
हमारा हाल देखने शहर को आए,
मगर हमारा दुर्भाग्य देखो,
चेहरों पर नकाब,
अपनों के पास बैठना तो दूर,
खुद का चेहरा छूना भी मुहाल हो गया,
भक्षक थे हर जीवों के हम,
उनका रक्षक बना एक वायरस,
हमारा काल हो गया,
जिसके भय से
आज हम विवश अपने ही घरों में कैद हो गए,
और विवश हैं वे लाखों लोग,
जिन्हें आज कोई डगर नजर नही आता,
भूख से मरे या कोरोना से,कुछ समझ नही आता,
निकल पड़े सिर पर सपनो की गठरी लिए,
पैदल उस गाँव की राह में
जिसे छोड़ आए थे वर्षों पहले
रोटियों की तलाश में,
दहशत चहुँओर,
ताकतवर था कलतक,आज कमजोर हो गया,
जिधर देखो उधर इंसान रो रहा,
जिधर देखो उधर इंसान रो रहा।
!!!मधुसूदन!!!

21 Comments

    • बिल्कुल सही कहा। अब बिना कोरोना का प्रत्येक साल लॉक डाउन होना चाहिए। विकास के साथ साथ प्रकृति का भी सुरक्षित होना विकास से ज्यादा जरूरी।

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        • Dear brother,
          I don’t know proccess of website promotions.keep writing promotion will happen automatically.

  • Very well described. Today’s scenario is indeed very sad where we have had to leave aside our own dear ones – friends and colleagues in equal measure scampering for our own safety. Those who could help us once are now the ones to shy away from.

  • विकास रुक गई या विनाश,
    मुद्दतों बाद आसमान साफ,वृक्ष धूल मुक्त,
    शांत वातावरण,शोर मुक्त बयार,
    चिड़ियों के झुंड उन्मुक्त उड़ते,
    मनमर्जी सड़कों पर टहलते,
    ऐसी शांति को देख
    जंगली जीव भी हरकत में आए,
    जंगलों को छोड़ कुछ जीव मानो दूत बन,
    हमारा हाल देखने शहर को आए,
    मगर हमारा दुर्भाग्य देखो,
    चेहरों पर नकाब,
    अपनों के पास बैठना तो दूर,
    खुद का चेहरा छूना भी मुहाल हो गया,
    भक्षक थे हर जीवों के हम,
    उनका रक्षक बना एक वायरस,
    हमारा काल हो गया,
    जिसके भय से
    आज हम विवश अपने ही घरों में कैद हो गए,
    और विवश हैं वे लाखों लोग,
    जिन्हें आज कोई डगर नजर नही आता,
    भूख से मरे या कोरोना से,कुछ समझ नही आता,
    निकल पड़े सिर पर सपनो की गठरी लिए,
    पैदल उस गाँव की राह में
    जिसे छोड़ आए थे वर्षों पहले
    रोटियों की तलाश में,
    दहशत चहुँओर,
    ताकतवर था कलतक,आज कमजोर हो गया,
    जिधर देखो उधर इंसान रो रहा,
    जिधर देखो उधर इंसान रो रहा।
    !!!मधुसूदन!!!

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