
ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है,
या कोई सबक या कयामत की निशा है।
है क्या ये सबकी समझ से परे,
शीतल हवा भी जहर से भरे,
सूनी हैं सड़कें,गलियाँ वीराना,
कैदी बना है ये सारा जमाना,
क्रंदन,शवों में ये सिमटा जहाँ है,
ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है।
दिनकर किरण,चन्द्र की कौमुदी से,
कैसा तिमिर ना डिगे इस महि से,
आँखों के आगे छाया अंधेरा,
रातें क्या तम का है दिन में बसेरा,
धुंधली दिशाएँ,अरमां धुआँसा,
बेबस खुदा या उसी का तमाशा,
ना युक्ति कोई कुंद बुद्धि पड़ी है,
भंवरजाल में जग की किस्ती पड़ी है,
हे भगवन,नियंता दया मांगते हम,
किए भूल दाता क्षमा मांगते हम,
दया कर,ना सूझता ये कैसी निशा है,
ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है।
!!!मधुसूदन!!
ShankySalty says
हम अपनी जड़ो को भुल गए इसलिए एैसा हो रहा है। हमारी जड़ यानी संत, संस्कृति, समाज।
इन तीनों पे जब जब अत्याचार होगा प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाएगी।
Madhusudan Singh says
निश्चित। और दिखाना भी चाहिए। अभी बहुत कुछ भुगतना शेष है।
Rajiv Sri... says
दिनकर किरण,चन्द्र की कौमुदी से, कैसा तिमिर ना डिगे इस महि से, आँखों के आगे छाया अंधेरा, रातें क्या तम का है दिन में बसेरा, धुंधली दिशाएँ,अरमां धुआँसा, बेबस खुदा या उसी का तमाशा,
एक एक छंद सुंदर, मंत्रमुग्ध और आँखे खोलनेवाली..!👌🏻👌🏻🙏🏻
Madhusudan Singh says
पुनः बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Anonymous says
हे भगवन,नियंता दया मांगते हम,
किए भूल दाता क्षमा मांगते हम,
Great words sir… Keep it up
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका पसन्द करने के लिए।
shivani405 says
Nice
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।🙏🙏
shivani405 says
Welcome
Pranshu says
पलाश लाल फूलों से था भरा भरा
फूल गिर गये
नई पत्तियाँ आ गई
पर
ये विप्लव कुछ ऐसा कि कोई बदलाव नहीं
जस का तस
नहीं हो रहा टस से मस
Madhusudan Singh says
क्या बात।।। क्या बात। लाजवाब।👌👌
वसन्त आया,मंजर लाया,
फल भी लगे,झर भी गए,
पर
ये विप्लव कुछ ऐसा कि कोई बदलाव नही,
जैसा था पहले,
अब
जस का तस
नही हो रहा टस से मस।
Pranshu says
❤😃
Pranshu says
इस विषय पर रात में कविता लिखी …”ताबूत कम ही हैं “😃 पापा से निरक्षण करवा के पोस्ट करते 🚩
विप्लव –उत्पाद , हलचल 👌
खूबसूरत शब्दो से रची रचना ….बहुत बढ़िया daddu❤
Madhusudan Singh says
धन्यवाद भाई। इंतजार रहेगा पोस्ट का।
PAmit says
it is so beautiful…nice combination of words and tuning…
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanywad apka sarahne ke liye.
myexpressionofthoughtsblog says
Nice poem sir.. If i see both reasons are valid for what have happened.. somewhere greed of human have made us all heavily paid
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanywad apka…..vikas ki daud vinash ke darwaaje tak le aayee.
myexpressionofthoughtsblog says
Absolutely true