VIPLAV/विप्लव

ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है,
या कोई सबक या कयामत की निशा है।
है क्या ये सबकी समझ से परे,
शीतल हवा भी जहर से भरे,
सूनी हैं सड़कें,गलियाँ वीराना,
कैदी बना है ये सारा जमाना,
क्रंदन,शवों में ये सिमटा जहाँ है,
ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है।
दिनकर किरण,चन्द्र की कौमुदी से,
कैसा तिमिर ना डिगे इस महि से,
आँखों के आगे छाया अंधेरा,
रातें क्या तम का है दिन में बसेरा,
धुंधली दिशाएँ,अरमां धुआँसा,
बेबस खुदा या उसी का तमाशा,
ना युक्ति कोई कुंद बुद्धि पड़ी है,
भंवरजाल में जग की किस्ती पड़ी है,
हे भगवन,नियंता दया मांगते हम,
किए भूल दाता क्षमा मांगते हम,
दया कर,ना सूझता ये कैसी निशा है,
ये आहट प्रलय या कर्मों की सजा है।
!!!मधुसूदन!!

19 Comments

  • हम अपनी जड़ो को भुल गए इसलिए एैसा हो रहा है। हमारी जड़ यानी संत, संस्कृति, समाज।
    इन तीनों पे जब जब अत्याचार होगा प्रकृति अपना रौद्र रूप दिखाएगी।

    • निश्चित। और दिखाना भी चाहिए। अभी बहुत कुछ भुगतना शेष है।

  • दिनकर किरण,चन्द्र की कौमुदी से,
कैसा तिमिर ना डिगे इस महि से,
आँखों के आगे छाया अंधेरा,
रातें क्या तम का है दिन में बसेरा,
धुंधली दिशाएँ,अरमां धुआँसा,
बेबस खुदा या उसी का तमाशा,

    एक एक छंद सुंदर, मंत्रमुग्ध और आँखे खोलनेवाली..!👌🏻👌🏻🙏🏻

  • हे भगवन,नियंता दया मांगते हम,
    किए भूल दाता क्षमा मांगते हम,

    Great words sir… Keep it up

  • पलाश लाल फूलों से था भरा भरा

    फूल गिर गये

    नई पत्तियाँ आ गई

    पर
    ये विप्लव कुछ ऐसा कि कोई बदलाव नहीं

    जस का तस

    नहीं हो रहा टस से मस

    • क्या बात।।। क्या बात। लाजवाब।👌👌

      वसन्त आया,मंजर लाया,
      फल भी लगे,झर भी गए,
      पर
      ये विप्लव कुछ ऐसा कि कोई बदलाव नही,
      जैसा था पहले,
      अब
      जस का तस
      नही हो रहा टस से मस।

  • इस विषय पर रात में कविता लिखी …”ताबूत कम ही हैं “😃 पापा से निरक्षण करवा के पोस्ट करते 🚩

    विप्लव –उत्पाद , हलचल 👌
    खूबसूरत शब्दो से रची रचना ….बहुत बढ़िया daddu❤

    • धन्यवाद भाई। इंतजार रहेगा पोस्ट का।

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