ANKHEN/आँखें
मेरे प्रिय मित्र,भाई और ब्लॉगर निमिष जी ने अपने ब्लॉग पर एक कविता प्रकाशित की जिसका शीर्षक है “आँखें” जिसे पढ़ कुछ शब्द निकल पड़े। प्रस्तुत है:-
पता नही पर्वत की चोटी पर जमी बर्फ कैसे पिघली,
और कैसे उसे सहेज असंख्य पत्थरों,
चट्टानों को लांघते,इठलाते,
बलखाते,
उन्मुक्त बहनेवाली
मीठे जल की मल्लिका निर्झरणी,
सागर से जा मिली,
कभी पूछना!
कभी पूछना उसने
उस खारे जल के बादशाह में क्या पाया,
फिर पूछना हमने तेरी आँखों में क्या पाया।
किसी ने मुरलीधर,किसी ने माखनचोर,
किसी ने श्रीकृष्ण में अपना आराध्य देखा,
तो किसी ने मात्र एक ग्वाला,
हमें नही मालूम
किसने तेरी आँखों मे क्या देखा,और क्या पाया,
प्रेम इज़्ज़त द्वेष या हवस!
मगर मेरे लिए,
मेरी आस्था,
सपनों की पराकाष्ठा,
मेरी धड़कन,मेरा दर्पण,
मेरी ख्वाहिश,मंजिल,और मेरी आदतें,
सिर्फ तूँ और तेरी आँखों की शरारतें,तेरी आँखों की शरारतें।
!!!मधुसूदन!!!
क्या बात है भक्ति का एक नया अंदाज़….👏👏👏👏👌👌
धन्यवाद आपका रचना सराहने के लिए।
वो कहते है न
नाथ जी न मुझसे दूर न मैं था उनसे दूर, आता न था नजर तो ये नजर का कसूर था।
क्या बात। सही कहा आपने ।
सात्विक प्रेम की सुन्दर अभिव्यक्ति 🙏
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।🙏
कविता अपने भावों के साथ बहा कर ले गई।
प्रेम से बड़ा कुछ भी नही।🙏
sach me bhot khoobsurat rachna hai sir
Pasand karne ke liye dhanyawad apka.🙏
Waah. behad khoobsurat rachna.
Pasand karne ke liye dhanyawad apka.