
दुख-सुख,हानि-लाभ,
रूठते-मनाते,
रोते,
मुस्कुराते,
चलता रहा वक़्त,
चलते रहे हम,
जैसे सूरज,
सारी जिंदगी दहकते रहे हम,
मगर इस आपाधापी में भूल गए
उस डूबते सूरज को देखकर भी कि,
एक दिन हमें भी रुकना है,
हमें भी डूब जाना है,
कदम अग्रसर उसी ओर
सजकर तैयार
डोला भी,
प्रतीक्षारत।
वाह रे जिंदगी!
क्या खोए,क्या पाए
खोए रहे इसी में उम्र भर,
इससे दूर स्वयं को हटा ना सके,
अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को समझा न सके,
अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को कभी समझा न सके।
!!!मधुसूदन!!!
Mahavish says
बहुत सही चित्रण है।
“जब लाद चलेगा बंजारा सब ठाठ यहीं पड़ा रह जाएगा।
Madhusudan Singh says
क्या बात है । बेहतरीन पंक्तियाँ। धन्यवाद।🙏
Rekha Sahay says
बहुत ख़ूब!
Madhusudan Singh says
सहृदय धन्यवाद।🙏
Rupali says
“अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को समझा न सके” . waah waah.
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद सराहने के लिए।