Arthahin/अर्थहीन
दुख-सुख,हानि-लाभ,
रूठते-मनाते,
रोते,
मुस्कुराते,
चलता रहा वक़्त,
चलते रहे हम,
जैसे सूरज,
सारी जिंदगी दहकते रहे हम,
मगर इस आपाधापी में भूल गए
उस डूबते सूरज को देखकर भी कि,
एक दिन हमें भी रुकना है,
हमें भी डूब जाना है,
कदम अग्रसर उसी ओर
सजकर तैयार
डोला भी,
प्रतीक्षारत।
वाह रे जिंदगी!
क्या खोए,क्या पाए
खोए रहे इसी में उम्र भर,
इससे दूर स्वयं को हटा ना सके,
अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को समझा न सके,
अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को कभी समझा न सके।
!!!मधुसूदन!!!
बहुत सही चित्रण है।
“जब लाद चलेगा बंजारा सब ठाठ यहीं पड़ा रह जाएगा।
क्या बात है । बेहतरीन पंक्तियाँ। धन्यवाद।🙏
बहुत ख़ूब!
सहृदय धन्यवाद।🙏
“अर्थहीन नही ये जीवन,इतना खुद को समझा न सके” . waah waah.
बहुत बहुत धन्यवाद सराहने के लिए।