ALLHADPAN/अल्हड़पन
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हलहड़ हूँ नादान मत कहना,
सही-गलत से अनजान मत समझना,
एक दिन हम भी स्थिर होंगे,
जलाशय की तरह,
अभी वक्त है,झरनों सा बहने दे,
अल्हड़ हूँ,नादानियाँ करने दे।
जीवन क्षणभंगुर,कल रहे ना रहे,
आँखों में सपने कल सजे ना सजे,
अभी ख्वाहिशें अनंत सजे हैं,
पाँवों में पंख लगे हैं,
वक्त है खुले अम्बर में उड़ने दे,
कब थमता है पल,शैतानियाँ करने दे।
मालूम हैं ख्वाहिशें तेरी भी हैं,
संग उड़ने को,
मगर डरते हो कहीं गिर न जाएँ,
उहापोह किश्ती को भंवर में फँसा देती है,
गुणा,भाग प्रेम को सौदा बना देती है,
कब थमा है हवा,पानी,वक्त और ये जीवन भी,
मगर आज,
सब थम सा गया है।
तार वीणा के उतना ही खींच कि
संगीत निकले,
मत खींच ऐसे,कहीं टूट न जाए,
समझ जितना समझना है,
परख जितना परखना है,
मगर
इतना मत परख कि परख भी डर जाए,
आ
बस भी कर,देर ना कर,
ऐसा ना हो कि कहीं वक्त निकल जाए।
आज पशोपेश से अगर निकल नहीं पाओगे,
चाहकर भी हमको कभी ढूँढ नहीं पाओगे,
रोओगे,तरसोगे,मुझसा ही तड़पोगे,जानते हैं,
मगर,
वक्त गुजर जाने पर क्या होगा,
फिर नीर बहाने से क्या होगा?
!!! मधुसूदन!!!
Beautiful poem. Zindagi sach mein Tag mach hai.
Thank you very much for read my poetry.
It’s always an honour to read your beautiful poems with great message and also to know about the wonderful history you share about our culture
Bahut bahut dhanywad apka.👏👏
ज़िंदगी का एक रंग है🙏😊
बहुत ही खूबसूरत
यही वो रंग है जिसमें जिंदगी है जिसने समझा वो जी लिया। जिसने ज्यादा समझा वो आज भी समझ रहा है।
सुंदर भावों से सुसज्जित रचना.
धन्यवाद सर सराहने के लिए।
बहुत ही सुन्दर रचना हैं सर जी!
एक एक लफ्ज़ बहुत महत्वपूर्ण हैं।
बहुत धन्यवाद आपका। आपकी लेखनी के आगे कुछ भी नही।