DEEPAK KI AWAZ/दीपक की आवाज
मैं जलता जग रौशन करता,
दुनियाँ मुझको दीपक कहता,
जब तक तेल दिए में होती,
मैं बाती संग जलते रहता,
क्या मुझ सा तुम जल पाओगे,दुनियाँ रौशन कर पाओगे,
बोलो ऐ इंसान स्वयं क्या मुझ जैसा तुम बन पाओगे?
क्यों नफरत का म्यान बना है,
इंसाँ से हैवान बना है,
बदल धर्म की परिभाषा को
क्यों फिर से शैतान बना है
दुनियाँ से क्या प्रेम मिटाकर,
मानवता का नाम मिटाकर,
इस दुनियाँ में आग लगाकर,क्या नफरत संग रह पाओगे,
बोलो ऐ इंसान स्वयं क्या मुझ जैसा तुम बन पाओगे?
अगर बदल सकते हो खुद को,
फिर मुझको तुम हाथ लगाना,
अगर जुल्म से लड़ सकते हो,
फिर अपने घर मुझे जलाना,
मैं जलता खुद तुम मिट जाना,
प्रभु राम सा तुम बन जाना,
क्या तुम ऐसा कर पाओगे,सत्य हेतु तुम मिट पाओगे,
बोलो ऐ इंसान स्वयं क्या मुझ जैसा तुम बन पाओगे?2
।।आप सभी को दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाएँ।।🙏
Good poem
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
जिसके मन हो हरियाली
वही मनावे सदा होली-दिवाली
ये दिवाली तो साल में एक बार आता है पर इसकी रौशनी हमें सालों भर जगमगाए रखती है। बस जरूरत है तो ह्रदय की मानवता को जगाये रखना।
बिल्कुल सही कहा। बहुत बहुत धन्यवाद विचार साझा करने के लिए।
बहुत ही अच्छी रचना है।
खामोशियां बहुत कुछ कह जाती है।
सुक्रिया आपका पसन्द करने के लिए।
मन प्रसन्न हो गया ।
हमें भी खुशी हुई आपको पसन्द आया।