सज के सवंर के दुल्हन सा बनके,
जनतंत्र आया दुनिया में हँसके,
सोंचा था उसने गगन में उड़ेंगे,
राजसी हुकूमत से ऊपर उठेंगे,
मगर तख़्त को छोड़ कुछ भी ना बदला,
मजहब और जाति में इंसान अटका।
कहीं है लाचारी कही पर ग़रीबी,
कहीं मौज मस्ती की छाई अमीरी,
कहने को जनतंत्र जनता का शासन,
मगर राजशाही पड़ी आज फीकी,
सिसकती है जनतंत्र जनता बिना अब,
बनी आज कुछ जातियों की है कैदी।
कैदी बनी कैसे जनतंत्र रहती,
सुनले कोई अब रोकर के कहती,
पता था हमें तुम हमारे नहीं हो,
धरती पर सच में सितारे नहीं है,
कैसे मिलन हो गया इस जहां से,
जहाँ सच के कोई ठिकाने नहीं हैं |
जहां पल में मिटती है माथे की सिंदूर,
कही पल में कोई दुलारा मिटा है,
धर्मों तले दैत्य करता है तांडव,
हरएक बार जनतंत्र बेदी चढ़ा है |
यहां खून पानी से सस्ता हुआ है,
हरएक बात पर एक दंगा हुआ है,
तड़पता है जनतंत्र किस्मत पर अपने,
मानवता यहां पर नंगा हुआ है |
यहां झूठे का बोलबाला हुआ है,
मनी माफिया का ठिकाना हुआ है,
मिला संग जाकर के सौदागरों से,
रखवाला जो हम सब का हुआ है |
गरीबों की बातें करतें हैं सब पर,
गरीबों की कोई सुनता कहाँ है,
मतलब है बदला गरीबी का जग में,
कुछ जाति का इस पर कब्ज़ा हुआ है,
कहने को जनता का शासन है लेकिन,
शासन भी कुछ जातियों का हुआ है |
टुकड़ो में दो पहले बांटा फिरंगी,
खुद जातियों में हम बँट गएँ हैं,
कभी एक भारत की करते थे बातें,
अब क्षेत्र की बात करने लगे हैं |
सम्हल जा ये जनतंत्र समझा रहा है,
सिसक कर के हर बात कहने लगा है,
मगर हम कभी भी सम्हलना न सीखा,
एक दूजे से सिर्फ लड़ना है सीखा |
मिला था कभी राजगद्दी रियासत,
जिसके लिए सबको टुकड़ों में बांटा,
मिला है अभी राजगद्दी आरक्षण,
जिसके लिए हम कुछ भी करेंगे,
भले टूट जाए जनतंत्र मेरा,
राजा के जैसे हम ना हटेंगे,
जनतंत्र मिटेगा, तूुुम भी मिटोगे,
क्यों कैदी बनाकर रखा है मुझको,
सिसककर के जनतंत्र कहता सभी से,
क्यों अपना बना फिर छलता है मुझको ।
क्यों अपना बना फिर छलता है मुझको ।।
Democracy is the people,for the people & by the people.
Now
Democracy is the caste,for the cast & by the cast.
!!! मधुसूदन !!!
Rekha Sahay says
अच्छी कविता .जनतंत्र यानि जनता क जनता के लिये जनता के द्वारा . पर काश भ्रष्टलोगो क प्रभाव कम हो .
Madhusudan Singh says
आपने पसंद किया—बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Abhay says
गणतंत्र की यह हालत हर जगह नहीं है, विविधताओं को समाहित करना गणतंत्र की सबसे बड़ी चुनौती है! अच्छा लिखा आपने
Madhusudan Singh says
जितनी मेरी समझ है जनतंत्र से बढ़िया कोई शासनतंत्र नहीं ।सच में हमारा जनतंत्र बहुत ही बढ़िया है एक आध अपवाद को छोड़कर परंतु जो कमी है वो नासूर बनते जा रहा है जिसे समय रहते दूर नहीं किया गया तो हम सब ये लिखने के काबिल भी नहीं बचेंगे। धन्यवाद जो आपने पसंद किया।
Abhay says
सही कहा आपने!
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत आभार आपका अभय जी