Jeevan Darshan
Kahaani (edhar-udhar se)
एक गावँ में आम का एक बिशाल पेड़ था जिसके छावँ में एक बच्चा प्रतिदिन खेलने जाया करता था | वह प्रतिदिन उसके डाल से लिपट-लिपट कर झूला झूला करता | धीरे-धीरे बच्चे से उस अनबोलते बृक्ष को प्रेम हो गया |अब वह प्रतिदिन उस बच्चे का बेसब्री से इंतेजार करता…..प्रेम इंतज़ार ही करता है | जैसे ही बच्चा पेड़ के पास आता, पेड़ ख़ुशी से झूम जाता,उसके आने से ऐसा लगता जैसे उसे संसार की सारी खुशियां मिल गयी हो | फल आने पर बच्चा पथ्थर मार-मारकर फल को तोड़ता,कभी उसके डाल को झुकाकर फल तोड़ता,इस चक्कर में कई बार उस पेड़ के टहनियां चोटिल हो जाया करती थी कभी-कभी कई टहनियां टूट भी जाया करती थी फिर भी उस पेड़ को लगता था की जैसे भी हो मेरे सारे फल इसे मिल जाए |
“प्रेम आनंदित होता है जब किसी की छाया बन जाता है, स्वार्थ आनंदित होता है जब किसी की छाया छीन लेता है.”
धीरे- धीरे बच्चा बड़ा होने लगा | पढ़ाई-लिखाई में ब्यस्तता होने के कारण वह कभी आता कभी नहीं भी आता, लेकिन बृक्ष उसकी हमेसा प्रतीक्षा करते रहता | जब वह नहीं आता वह बहुत उदास होता और जब वह आ जाता उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना पूछो | समय बीतता गया बच्चा और बड़ा होता गया तथा बृक्ष के पास आने के दिन और कम होते गए |
“जो आदमी जितना बड़ा होता जाता है महत्वाकांक्षा के जगत में, अपनों के पास आने की सुबिधा उतनी ही कम होती जाती है |”
काफी दिनों बाद एक दिन उसे पैसे की बहुत जरुरत पड़ी तब उसे फल से लदे उस पेड़ की याद आयी | वह पेड़ पर चढ़ा और कच्चे-पक्के सारे फल तोड़ लिए | इस दरम्यान काफी पत्ते टूटे,टहनियां भी टूटीं परन्तु पेड़ आनंदित था, बहुत खुश था यह सोंचकर कि कारण चाहे जो भी हो वह पास आया तो सही |
“टूटकर भी प्रेम आनंदित होता है, स्वार्थ पाकर भी आनंदित नहीं होता.”
वह फल को तोड़ झोली में भरकर चला गया बृक्ष चुपचाप देखता रहा | बृक्ष बहुत दिनों तक इंतेज़ार करता रहा परंतु वह नौजवान दोस्त नहीं आया | समय बीतता गया नौजवान की शादी हो गयी | अब उसे घर बनाने हेतु कुछ लकड़ियों की जरुरत पड़ी | वह पेड़ के पास गया | पेड़ जानता था कि वह मुझे काटने आया है फिर वह खुश था यह सोंचकर कि वह काटने ही सही पर पास आया तो सही | नौजवान ने बृक्ष कि सारी शाखाएं काट डाली, बृक्ष ठूठ हो गया फिर भी बृक्ष आनंदित था |
“बच्चा तबतक माँ के पास रहता है जबतक माँ के स्तन के सारे दूध खत्म नहीं हो जाता और माँ तबतक बच्चे को अपने हृदय से लगाए रहती है जबतक वह छोड़ना नहीं चाहता |”
“स्वार्थ समझता है कि हम जो भी उसके साथ कर रहें हैं उसे नहीं मालुम परंतु प्रेम सब समझकर भी चुप रहता है|”
वक्त गुजरता गया वह ठूठ पेड़ अब भी उसका राह देखता रहा, परंतु वह नौजवान नहीं आया | वह चिल्लाना चाहता था परंतु अब उसके पत्ते भी नहीं जिससे वह आवाज़ दे सके | धीरे-धीरे समय गुजरता गया नौजवान बूढा हो गया | अचानक उसे बिदेश जाने हेतु एक नाव कि जरुरत हुयी तब उसे पुनः उस बृक्ष कि याद आयी और वह उस ठूठ पेड़ के पास गया |
“स्वार्थ वहीँ जाता है जहां उसे कुछ मिलने कि उम्मीद हो |”
उसने बृक्ष को काट डाला, बृक्ष यह सोंचकर आनंदित था कि कल तक जो मेरे डाल से लिपटकर खेलता था अब कम से कम उसके चरण उसी डाली से बने नाव पर आते जाते पड़ेंगे तो सही | उसका कुछ दिनों का ही सही, सानिध्य तो होगा | उस बुजुर्ग ने उस पेड़ की लकड़ी से नाव बनाया और बिदेश चला गया | नाव बने उस बृक्ष ने काफी दिनों तक अपने दोस्त का इंतेज़ार किया परंतु वह फिर कभी वापस नहीं आया | इधर नाव भी पुराना हो खत्म होने के करीब था फिर वह काफी ब्यथित था यह सोंच कर कि कहीं वह बिदेश में भटक न गया हो कहीं वह समाप्त न हो गया हो | एक खबर भर मुझे कोई ला दे . अब मैं मरने के करीब हूँ | एक खबर भर आ जाए कि वह शकुशल है, फिर कोई बात नहीं |अब तो मेरे पास देने को कुछ भी नहीं, इसीलिए शायद बुलाऊँ तो भी वह नहीं आएगा | वह नहीं आएगा ……..वह नहीं आएगा……..और नाव के अवशेष उसका इंतेज़ार करते करते सागर में बिलीन हो गए…………………..|
ऐसे ही हमारे कितने ही अपने हैं जिन्होंने हमें बहुत कुछ दिया, परंतु इस महत्वाकांक्षी दुनियां में उलझ हम उन्हें बिलकुल ही भूल बैठें हैं जबकि उन अपनों में से किसी न किसी की आँखें हमारा बेसब्री से इंतेज़ार करते- करते सदा के लिए बंद होते जा रहें है ……..
अंततः हमने क्या खोया और क्या पाया..?
जिंदगी में ना जाने कौन सी बात आखरी होगी,
ना जाने किश्मत में कौन सी रात आखिरी होगी,
मिलते-जुलते एक दूसरे से बातें करते रहो यारों,
ना जाने किश्मत में कौन सी मुलाक़ात आखिरी होगी |
“मधुसूदन”
बहुत सुंदर
सुक्रिया आपको पसंद आया
बस यूँ ही उम्दा लेख लिखते रहें आप।
हौसला बढ़ाने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।
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My post is a little different this time…
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आप की कहानी बहुत ही अच्छा लगा। ऐसे ही लिखते रहिये।
सुक्रिया हौसलाअफजाई के लिए—–आपको पसंद आया जानकार बहुत ख़ुशी हुई—–बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
कहानी के माध्यम से आपने प्रेरक सन्देश दिया है।……शायद कुछ लोगो के लिए स्वार्थ सारे रिश्तों से ऊपर हो जाता है।
वास्तव में आपकी ये कहानी मुझे बार बार अहसास कराती है ,कि माता पिता को अगर मैंने क्षण भर भी भुलाया तो इससे बड़ा पाप मेरे लिए कुछ भी नहीं होगा
वाकई जैसा हम करेंगे वैसा भरना होगा——-वैसे भी बूढी आँखों को रुलाने से बड़ा पाप क्या होगा—–धन्यवाद
Haan sbse bda paap yhi h ki hm unse door chle jate h uss waqt JB unhe hmari svse jyada jrurat Hoti h
सही कहा आपने—-धन्यवाद।
Jabardast 👍👍
Kahaani achhi lagi abhay ji …….hame bahut achha lagaa……..dhanyawaad aapka.
Kahani aaj ke mere lekh ke saman thi
सर जी आपके लेख को देख कर ही बिचार आया—–आपके लेख में अनगिनत संदेश थे मैंने सोंच एक मैं भी जोड़ दूँ—-। आखिर पेड़,पशु,पक्षी पालते नहीं पर उनको भी हमसे प्रेम जरूर होता है ।हमें भी उनके पास जाकर अद्भुत सुकून मिलता है जिसे महत्वाकांक्षा की बलिबेदी चढ़ा देते है हम सब। सुक्रिया।
Ary sir ji, aap jabardast likhte ho. Shubhkamnaye
Aap sab kaa pyaar aur hausla hi likhne ko bibas karta hai……..saath hi aap sab ke lekh aur kavita ka hi mahatwapurn yogdaan hota hai jisme ham sirf tadkaa lagaate hain. Thanks.
Padthe padthe ankhoen mein aasu agaye. Mata Pita ka prem apne is ped ki kahani se kithni achi tarah hame di hai.
Dhanyawaad Sunith ji aapko kahaani achhi lagi. …………sach me ham sab apni armaano ko pura karne me kitno ke armaano ka gala ghot rahe hai………aakhir we bhi mere saath sapna dekhe they……..aaj ham me se kayee unhen bhul kisi aur ke saath sapnaa dekh rahe hai……kayaa o sapnaa kabhi puraa hogaa……kabhi nahi….punah Abhaar aapka.