जितना समझा,
कम रहा,
बस इन्हीं बातों का गम रहा,
न जाने कितने तूफान आए,
न जाने कितने पर्वत
राहों में
चक्रवात आए,
मगर
सदैव आगे बढ़ता रहा,
तेरे हौसले,जिद्द में
पल-पल
निखरता रहा,
सबकुछ लुटा दी,
मेरे एक मुस्कान पर,
कितना समझाया तूने
हर गलत बात पर,
ऐसे ही नही हर बार मझधार से निकलता रहा,
सवाल कैसा भी हो
उलझता
मगर हल करता रहा,
सफल समझा सबने हमें,
मगर आज भी
स्वयं को मैं
अनुतीर्ण समझता रहा,
क्योंकि
जो अर्जित किया वो
ज्ञान,सम्मान
धन-वैभव ,
ताकत,
सब मिलकर भी
नही कर पाए रंगीन वो पन्ने जवाबों से
जहाँ खड़ी थी पहेली बन,
माँ और जिंदगी,
बहुत की तपस्या
बहुत की
ईश्वर की बंदगी,ईश्वर की बंदगी।
!!!मधुसूदन!!!
The Poetry Project says
मार्मिक पंक्तियाँ❤
Madhusudan Singh says
पुनः धन्यवाद संग आभार।🙏
subedarsingh869 says
धन्यवाद
Close to heart ❤💖💓 says
Nice lines
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Rupali says
Marmik abhivyakti.
Madhusudan Singh says
Punah dhanyawad apka.
Ashish kumar says
Bahut hi sundar. Lajawab kavita
Madhusudan Singh says
Bahut bahut dhanyawad bhayee…. Sarahney ke liye.
अनिता शर्मा says
ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति 👌🏼👌🏼
Madhusudan Singh says
पसन्द करने के लिए धन्यवाद बहन।🙏
Rajiv Sri... says
मार्मिक..👌🏻👌🏻👌🏻
Madhusudan Singh says
धन्यवाद मित्र। आपकी उपस्थिति आपकी कुशलता बयान कर रही है। ईश्वर आपको स्वस्थ्य एवं सकुशल रखे।
Rajiv Sri... says
धन्यवाद… उम्मीद और प्रार्थना करता हूँ कि आप भी इस विकट परिस्थिति में सपरिवार सकुशल रहें.!🙏🏻
Darde Sayri says
bahut sunder ❤️
Madhusudan Singh says
पसन्द करने के लिए धन्यवाद।🙏
Ila Rani says
लाजवाब!!
Madhusudan Singh says
पसन्द करने के लिए धन्यवाद।🙏
ShankySalty says
बेहद प्यारी पंक्तियाँ 💕🤗
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
surinder kaur says
Khoobsurat
Madhusudan Singh says
पसन्द करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।