MAA AUR JINDGI/माँ और जिंदगी
जितना समझा,
कम रहा,
बस इन्हीं बातों का गम रहा,
न जाने कितने तूफान आए,
न जाने कितने पर्वत
राहों में
चक्रवात आए,
मगर
सदैव आगे बढ़ता रहा,
तेरे हौसले,जिद्द में
पल-पल
निखरता रहा,
सबकुछ लुटा दी,
मेरे एक मुस्कान पर,
कितना समझाया तूने
हर गलत बात पर,
ऐसे ही नही हर बार मझधार से निकलता रहा,
सवाल कैसा भी हो
उलझता
मगर हल करता रहा,
सफल समझा सबने हमें,
मगर आज भी
स्वयं को मैं
अनुतीर्ण समझता रहा,
क्योंकि
जो अर्जित किया वो
ज्ञान,सम्मान
धन-वैभव ,
ताकत,
सब मिलकर भी
नही कर पाए रंगीन वो पन्ने जवाबों से
जहाँ खड़ी थी पहेली बन,
माँ और जिंदगी,
बहुत की तपस्या
बहुत की
ईश्वर की बंदगी,ईश्वर की बंदगी।
!!!मधुसूदन!!!
मार्मिक पंक्तियाँ❤
पुनः धन्यवाद संग आभार।🙏
धन्यवाद
Nice lines
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Marmik abhivyakti.
Punah dhanyawad apka.
Bahut hi sundar. Lajawab kavita
Bahut bahut dhanyawad bhayee…. Sarahney ke liye.
ह्रदयस्पर्शी अभिव्यक्ति 👌🏼👌🏼
पसन्द करने के लिए धन्यवाद बहन।🙏
मार्मिक..👌🏻👌🏻👌🏻
धन्यवाद मित्र। आपकी उपस्थिति आपकी कुशलता बयान कर रही है। ईश्वर आपको स्वस्थ्य एवं सकुशल रखे।
धन्यवाद… उम्मीद और प्रार्थना करता हूँ कि आप भी इस विकट परिस्थिति में सपरिवार सकुशल रहें.!🙏🏻
bahut sunder ❤️
पसन्द करने के लिए धन्यवाद।🙏
लाजवाब!!
पसन्द करने के लिए धन्यवाद।🙏
बेहद प्यारी पंक्तियाँ 💕🤗
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Khoobsurat
पसन्द करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।