Nafrat ki Aandhi
शंखध्वनि, घंटे, अजान के, सुर में दुनियां नाच रही है,
अपनी डफली छोड़कर देखो,मानवता चित्कार रही है।
हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,
सब कहते सब भाई हैं,
अल्लाह,ईश्वर,गॉड,गुरु में,
फिर क्यों छिड़ी लड़ाई है,
आहत है इन्सान यहां,
हर घर पर आफत आयी है,
सत्ता का संघर्ष मात्र,
वर्चस्व की छिड़ी लड़ाई है,
कैसा रूप लिया मानव,किस ओर ये दुनियां भाग रही है,
अपनी डफली छोड़कर देखो,मानवता चित्कार रही है।
धरती बांटा,सागर बांटा,
वस्त्र,रंग सब बाँट दिया,
मजहब के रंगों में रंग कर,
इंसानो को बाँट दिया,
जन्म दिया जिसने हमसब को,
उसी की रक्षा करते हैं,
धर्म कहाँ इस जग में इसके,
नाम पर जग को ठगते है,
धरती माता चीख रही अब,नफरत की दरबार लगी है,
अपनी डफली छोड़कर देखो,मानवता चित्कार रही है।
किसी ने पढ़ ली गीता कोई,
आयत रट कर बैठा है,
प्रेम,दया और त्याग न जाना,
पंडित बन कर बैठा है,
मानव का दुश्मन अब मानव,
दुर्योधन का त्याग करो,
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
आओ अब इंसान बनो,
बहुत हुआ तांडव नफरत का,धरती शांति मांग रही है,
अपनी डफली छोड़कर देखो,मानवता चित्कार रही है।
!!! Madhusudan!!!
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