PATA NAA CHALA/पता ना चला।
ख्वाब कब अपने,
अपनों के हो गए,
पता ना चला।
फिक्र में उन्ही के,
कब जीवन ये ढल गए,
पता ना चला।
जीवन सफर में रहे दौड़ते हम,
कदम कब रुके,
पता ना चला।
मालूम बुढ़ापा आना था एक दिन,
बूढ़े हुए कब,पता ना चला।
थी अपनों की बस्ती,
बुलंदी पर जब थे,
अकेला हुए कब,पता ना चला।
अकेला हुए कब,पता ना चला।
!!!मधुसूदन!!!
Behtarin rachana
bahut bahut dhanywad apka sarahne ke liye……bahut dinon baad aanaa huaa apka……ummid karta hun swasthya evam sakushal honge.
Very nice and inspiring
Thank you very much..🙏
Heartfelt lines written.
Thank you very much for your appreciations.🙏
मार्मिक अभिव्यक्ति..!👌🏻👏🏻👏🏻🙏🏻
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।🙏
Very deep thought behind the poem. Beautifully penned.
Thank you very much for your appreciations.🙏
बहुत सुन्दर है,, भाई साहब,,,आपकी ये रचना,,, हमें पता चल गया 👌👌
बहुत बहुत धन्यवाद मित्र।मालूम होकर भी उसी राह पर चलना पता नही चलना हुआ मित्र।😊
😀😀 शुभ प्रभात भाई साहब,,,श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएं सपरिवार आपको 🙏
Thank you very much.🙏
Very nice 🙂👌👏👏👏