PATA NAA CHALA/पता ना चला।

ख्वाब कब अपने,
अपनों के हो गए,
पता ना चला।
फिक्र में उन्ही के,
कब जीवन ये ढल गए,
पता ना चला।
जीवन सफर में रहे दौड़ते हम,
कदम कब रुके,
पता ना चला।
मालूम बुढ़ापा आना था एक दिन,
बूढ़े हुए कब,पता ना चला।
थी अपनों की बस्ती,
बुलंदी पर जब थे,
अकेला हुए कब,पता ना चला।
अकेला हुए कब,पता ना चला।
!!!मधुसूदन!!!

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