PREM/प्रेम
प्रेम किसे कहते उसे नही पता,
जो पर्वत की ऊंची चोटियों से पिघले हिम को,
अपनी दोनो भुजाओं में समेटे,
चट्टानों से चोट खाते,
हर बांधो को तोड़ते,
अपना मार्ग स्वयं बना,
सागर में खो जाने के पूर्व स्वयं,
न जाने कितने ही जीवों का
आशियाना बन जाते,
प्रेम किसे कहते उसे ज्ञात नही,
फिर भी, बिना भेदभाव किए
न जाने कितने ही जीवों का प्यास बुझाते,
नही करते प्रेम का बखान,
खेतों में लहलहाते पौधे,
फलों से लदे वृक्ष,
एवं असंख्य वनस्पतियां भी,
मगर असंख्य जीवों का भूख मिटाते,
और हम प्रेम के बड़े बड़े,
नित्य नए ग्रंथ लिखते,
खुद को सर्वश्रेष्ठ कहते,
और करते लूटपाट,हत्या,बलात्कार,
उजाड़ते नित्य किसी न किसी के आशियानें,
खेलते भावनाओं से और करते अत्याचार,
काश! हम भी प्रेम को नही समझते,
वृक्षों,वनस्पतियों की तरह रहते,
नदियों को तरह बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते,
फिर इन आंखों से,अश्क नही बहते।

Beautiful ☺️
Dhanyawad apka.🙏