कैसे मैं कुछ और सुना दूँ,
गीत नही कुछ सिवा तुम्हारे,
कैसे दिल कहीं और लगा लूँ,
मीत नही कोई सिवा तुम्हारे,
मैं ना जानु सत्य यहाँ क्या,
ना मैं जानु झूठ है क्या,
तुमको देखा देख लिया जग,
मैं ना जानु हूर है क्या,
तुम ही मय,तुम ही मदिरालय,
तुम ही देव,मेरे देवालय,
तुम ही धड़कन जान तुम्ही है,
सपने सब अरमान तुम्ही है,
तुम ही लफ्ज,तुम ही श्वासों में,
तुम ही धुन,तुम जज्बातों में,
कैसे कह दूँ कहाँ नही तुम,
वहाँ नहीं कुछ जहाँ नही तुम,
देख हृदय के कण-कण में तुम,
और नही कुछ सिवा तुम्हारे,
कैसे दिल कहीं और लगा लूँ,
मीत नही कोई सिवा तुम्हारे,
कैसे दिल कहीं और लगा लूँ,
मीत नही कोई सिवा तुम्हारे।
!!!Madhusudan!!!

Mahavish says
बहुत सुन्दर 🙏🙏
Madhusudan Singh says
आभार आपका।🙏
Mahavish says
🙏🙏
Madhusudan Singh says
🙏
Rekha Sahay says
सुंदर और भावपूर्ण रचना!
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
(Mrs.)Tara Pant says
“तुम बिन जाऊं कहाँ” भाव प्रेमरस सुंदर अभिव्यक्ति।
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
(Mrs.)Tara Pant says
🤗
Sikiladi says
कैसे दिल कहीं और लगा लूँ,
मीत नही कोई सिवा तुम्हारे,
कैसे दिल कहीं और लगा लूँ,
मीत नही कोई सिवा तुम्हारे।
so beautifully said. Loved it.
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
Rajiv Sri... says
कैसे कह दूँ कहाँ नही तुम,
वहाँ नहीं कुछ जहाँ नही तुम,
👌🏻👌🏻पुरी निचोड़🙏🏻
Madhusudan Singh says
सहृदय धन्यवाद।🙏
अनिता शर्मा says
बहुत सुंदर 👌🏼ह्रदयस्पर्शी रचना 👏👏
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए। 🙏🙏
चित्रा मल्हौत्रा says
वाॅह
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Soni Cool😎 says
Wah wah bahat khub👏🏻👏🏻❤️
Madhusudan Singh says
धन्यवाद आपका।