AAH GARIB KA
क्यों सताते हैं लोग मजलूमों को, भूल जाते हैं, बेसहारे भी हैं इस जहां के, क्यों रुलाते हैं | सबका जीवन भी है एक जैसा, सबको मरना भी है एक जैसा, ये बना पंच तत्वों का तन है, ब्यर्थ इतरा ना तन एक जैसा, साथ जाता नहीं ये कफ़न भी, क्यों गुर्राते हैं, बेसहारे भी […]