क्यों सताते हैं लोग मजलूमों को,
भूल जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |
सबका जीवन भी है एक जैसा,
सबको मरना भी है एक जैसा,
ये बना पंच तत्वों का तन है,
ब्यर्थ इतरा ना तन एक जैसा,
साथ जाता नहीं ये कफ़न भी,
क्यों गुर्राते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |1
इतनी खिल्ली उड़ा ना गरीब का,
ये तो सब खेल है बस नसीब का,
मृत चमड़े से लोहा पिघलता है,
आह खाली ना जाता गरीब का,
हक़ तिजोरी में रख ना गरीब के,
लूट जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |2
भूख से देख वो लड़ रहा है,
तुम बिमारी में उलझा हुआ है,
चैन उसका तुम्हारे हवाले,
नींद तेरा खुदा के हवाले,
दर्द उसको दिया,रब ने तुमको दिया,
क्यों सताते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |3
आ तिजोरी को थोड़ी हवा दे,
उन गरीबों का जीवन बना दे,
उनका हक़ है उसे ना छुपाओ,
आह से खुद को अब तू बचा ले,
सब के तन में बसा रब है प्यारे,
भूल जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |4
!!! मधुसूदन !!!
gauravtrueheart says
पुनः एक अद्भुत रचना
Madhusudan says
हौसला बढ़ाते आपके शब्द—-!धन्यवाद आपका।
रजनी की रचनायें says
बहुत ही अच्छा वर्णन किया है गरीबों का।
Madhusudan says
धन्यवाद आपका मेरी कविताओं को पढ़ने के लिए।
Md Danish Ansari says
na tera lakh hoga na mera ek hoga
na teri badai hogi or na meri hasai hogi
waha to bas insaaf hoga
# Qayamat
#Insaaf_ka_Deen