
क्यों ना राहें हों अनजान राही मगर
वे भी अपना सा लगने लगेंगे,
जरा चलकर तो देख,
मत समझ तुक्ष खुद को प्रणेता है तूँ,बदल किस्मत की रेख।
बंजर,कंटीले हों क्यों ना डगर,
मंजिल वहीं होंगे तेरे बसर,
सजने लगेंगे वही ख्वाब तेरे,
थिरकने लगेंगे वहीं पाँव तेरे,
मिल जाएंगे फिर मुकाम,
जरा चलकर तो देख,
मत समझ तुक्ष खुद को प्रणेता है तूँ,बदल किस्मत की रेख।
तन से जो तेरे पसीने बहेंगे,
निश्चित वही कल नगीने बनेंगे,
बन जाते हैं मरु-जन्नत सी राहें
खिल जाते हैं वहीं फूलों से बागें,
चुभते जहाँ शूल पाँव,
जरा चलकर तो देख,
मत समझ तुक्ष खुद को प्रणेता है तूँ,बदल किस्मत की रेख।
चाह ले तूँ अगर कुछ भी कर सकता है,
चीर भूधर को राहें बदल सकता है,
ये तो हैं शूल किंचित क्यों डरने लगे,
जग में निर्बल स्वयं को समझने लगे,
ध्रुव,प्रह्लाद की देख भक्ति अटल,
थे वे बालक तरुण तुम स्वयं को परख,
मांग मन में है तेरे तूँ क्या चाहता,
दीप्ति,धन,शक्ति,भक्ति या यश मांगता,
ईश आकर के कहने लगेंगे,
जरा चलकर तो देख,
मत समझ तुक्ष खुद को प्रणेता है तूँ,बदल किस्मत की रेख,
मत समझ तुक्ष खुद को प्रणेता है तूँ,बदल किस्मत की रेख।
!!!मधुसूदन!!!
Ashish kumar says
wah… atyant prernadayak panktiyan… Bahut hi sundar…
Madhusudan Singh says
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
Rupali says
Prernadayi rachna. Waah
Madhusudan Singh says
पुनः आभार आपका।