Ummid/उम्मीद

मैं जैसे मरुस्थल में भटकता पथिक,
भूख और प्यास से व्यथित,
सूर्य का प्रचण्ड ताप,
जहाँ ना कोई झुरमुट,
ना कोई गाछ,
जिस्म बेजान,
निकलने को आतुर प्राण,
टूटे दिल,टूटे सभी ख्वाब बीच,
धोखे,झूठ,फरेब भरी दुनियाँ से टूटे विश्वास बीच
बंधे जीवन की आस
जब पड़े मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ,
जब पड़े मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ।
कभी दया,करुणा,प्रेम से भरे,
अभी दर्द का सैलाब हूँ,
कुछ भी नही छुपाए,
खुली किताब हूँ,
टूटे हैं बहुत,
हमें और मत तोडना,
बीच सफर में तुम भी साथ मत छोडना,
सजने लगे सपने पुनः
खिल उठे दिल के गुलाब,
जब पड़े मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ,
जब पड़े मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ।
!!!मधुसूदन!!!

मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ…
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Collaborating with YourQuote Didi

10 Comments

  • बहुत दिनों बाद दर्शन हुए भाई साहब अपने चिर-परिचित,,, अभिव्यक्ति के साथ,, नमस्कार 🙏

    • समय नही मिल पा रहा है भाई। मगर भुला नही हूँ आपसभी को। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।🙏🙏

      • कैसे भूलेंगे भाई साहब,,आप हमें भूलने देंगे आपको,,तब,,पर बहुत याद आती है आपकी,, सबसे ज्यादा कमैट आप ही करते थे,,इस बेवसाइट पर मेरी 🙏

        • हा हा । सब वक़्त करवाता है। शुभरात्रि।🙏

  • वाह!! आपके इस कविता में कितना गहरा अर्थ छुपी हुई है।
    आपके लेखनशैली को मेरी प्रणाम। 🙏🙏🙏

    • बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए।🙏🙏

  • टूटे दिल,टूटे सभी ख्वाब बीच,
    धोखे,झूठ,फरेब भरी दुनियाँ से टूटे विश्वास बीच
    बंधे जीवन की आस
    जब पड़े मेरे काँधे पर तुम्हारा हाथ,

    बेहद खुबसूरत पंक्तियाँ ❤

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