AAH GARIB KA
क्यों सताते हैं लोग मजलूमों को,
भूल जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |
सबका जीवन भी है एक जैसा,
सबको मरना भी है एक जैसा,
ये बना पंच तत्वों का तन है,
ब्यर्थ इतरा ना तन एक जैसा,
साथ जाता नहीं ये कफ़न भी,
क्यों गुर्राते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |1
इतनी खिल्ली उड़ा ना गरीब का,
ये तो सब खेल है बस नसीब का,
मृत चमड़े से लोहा पिघलता है,
आह खाली ना जाता गरीब का,
हक़ तिजोरी में रख ना गरीब के,
लूट जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |2
भूख से देख वो लड़ रहा है,
तुम बिमारी में उलझा हुआ है,
चैन उसका तुम्हारे हवाले,
नींद तेरा खुदा के हवाले,
दर्द उसको दिया,रब ने तुमको दिया,
क्यों सताते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |3
आ तिजोरी को थोड़ी हवा दे,
उन गरीबों का जीवन बना दे,
उनका हक़ है उसे ना छुपाओ,
आह से खुद को अब तू बचा ले,
सब के तन में बसा रब है प्यारे,
भूल जाते हैं,
बेसहारे भी हैं इस जहां के,
क्यों रुलाते हैं |4
!!! मधुसूदन !!!
👌👌👌
बहुत ही संवेदनशील…. शब्दों का बहुमूल्य संयोजन
सुक्रिया पवन जी।
सही विवरण, अच्छा लिखा है आपने
पसंद करने के लिए आभार आपका।
Atyant marmik, hardaysparshi
धन्यवाद पसंद करने के लिए।
🙏🙏🙏
Very nice sir!
Thank you very much…
Thank you for your valuable comments.
Awesome sir
very true.
nicely described.
Thank you very much….
Khoobsurat rachna
धन्यवाद आपका।
बहुत सुंदर अच्छा मेसेज समाज के लिए 👍👌
सुक्रिया आपका।