AKROSH/आक्रोश
हाथों मे सोने का कंगन लिए बाघ,
खुद को शाकाहारी बन जाने का ढोंग करता,
दुर्योधनी सोच लिए सरहद रौंदने को ततपर पड़ोसी
मन में घृणित रोग रखता,
दशानन का साधु बन आना,
और हर बार तेरा
छला जाना,
आखिर कब तक?
आखिर कब तक उस अधर्मी संग धर्म निभाओगे,
पाशे का छल,द्रौपदी की चीख,और उबाल लेता धमनियों में
शोणित की प्रवाह भूल,कबतक?
आखिर कबतक उस शकुनि के झाँसे में आवोगे।
भेड़िये से मित्रता,
लोमड़ी पर ऐतबार कैसा,
सरहद लहूलुहान और घर में सियासी कोहराम कैसा,
तिरंगे में लिपटे शहीदों के शव आ रहे,
जवान विधवा बहनों की आँखें,
अंगारे बरसा रहे,
बूढ़ा बाप मिट जाने को आतुर,
ममता की छाती फट जाने को व्याकुल,
ब्यथित भाई,क्रोधित जनता!
जिसके मन में बस एक ही सवाल कौंधता,
आखिर कबतक?
वे करें छल और तुम स्नेह दिखलाओगे,
आखिर कबतक उस शकुनि के
झाँसे में आवोगे।
देवो की भूमि भारत,
असहनीय आतताईयों का बढ़ता अत्याचार,
रौंदने को आतुर माँ का आँचल,लक्ष्य सीमा विस्तार,
हे त्रिदेव! इन दुष्टों को अब अपने रौद्र रूप का दीदार करा दो,
छोड़ दो मुरली की मधुर तान,
सजने दो उंगलियों पर पुनः चक्र शुदर्शन,
कुरुक्षेत्र का पुनः मैदान सजा दो,
ऐ मातृभूमि के रक्षक,नीति नियंता,
ऐ सत्तारूढ़ निर्णयकर्ता,
कहने दो जिसे जो भी कहना,
तुम भी खुद को अशोक बना दो,
देख बहनों ने भी उतार फेंके कलाईयों से चूड़ियाँ,
सजा दो उनके भी हाथों में खडग,हमें भी खाकी का स्वाद चखा दो,
और भेज दो सरहद पर
शहीद होने को एक साथ,
या खत्म हो जाने दो ये छद्मयुद्ध,
आखिर कब तब हम भाईयों को एक एककर बलि चढ़ाओगे,
पाशे का छल,द्रौपदी की चीख,और उबाल लेता धमनियों में शोणित का प्रवाह भूल,
कबतक?
आखिर कबतक उस शकुनि के झाँसे में आवोगे।
!!!मधुसूदन!!!
यथार्थ लेखनी..!👌🏻👌🏻🙏🏻
Waah. Satya wachan.
Dhanyawad bahna.
Stay safe and healthy bhaiya.
Bahut hi bhayawah pal.
कड़वी बातों और सत्य को आपने कविता में ढाल दिया.
बहुत बहुत धन्यवाद आपका सराहने के लिए।
प्रासंगिक आव्हान। हृदय स्पर्शी।
बहुत बहुत आभार आपका।
शुक्रिया।