Ansu/आँसूं
आँखों में दो बूंद है पानी,आंसू बनकर बहते हैं,
उसको ना पहचान सके जो आँखों में ही रहते है।
किश्ती में हैं घूम लिया,सागर में उम्र गुजारा है,
फिर भी देख मुशाफिर कैसे,सागर ना पहचाना है,
समझ सका ना ख़ुशी है या फिर,जख्म जिगर में गहरे है,
उसको ना पहचान सके,जो आँखों में ही रहते है।
गुलशन में हलचल है,ख़ुशी के शोर तले सन्नाटा है,
भीड़ में अपनों के है कोई फिर भी दिल घबराता है,
दिल में कैसा ज्वार उठा या उठती प्यार की लहरें हैं,
उसको ना पहचान सके जो आँखों में ही रहते है।
बिरह का सागर फुट नदी,आँखों के रास्ते बहती है,
काजल बनी किनारा हरपल गालों पर ही रहती हैं,
उर के बीच में बहती धारा,कंचुकी नहीं सुखत सुन आजा,
रंगहीन,गम,ख़ुशी के आंसू,रंग बयाँ सब करते है,
उसको ना पहचान सके जो आँखों में ही रहते हैं।
दौलत का है नशा सभी को चकाचौंध की दुनियाँ में,
प्रेम का दौलत बिखर रहा है बैभवशाली दुनियाँ में,
एक भटकता चकाचौंध में बिरह में कितने जलते हैं,
उसको ना पहचान सके जो आँखों में ही रहते हैं।
उसको ना पहचान सके जो आँखिन में ही रहते हैं।
!!! मधुसूदन !!!
उत्तम
सुक्रिया —-धन्यवाद
बड़ा व्यवहारिक बात कही है आपने —
दौलत का है नशा सभी को चकाचौंध की दुनियाँ में,
प्रेम का दौलत बिखर रहा है बैभावशाली दुनियाँ में,
आभार आपका आपने पसंद किया, सच में चकाचौंध की मज़बूरी कस्तूरी से दूर करते जा रहा है इंसान को।
इसलिये तो मुझे यह सच अौर व्यवहारिक लगा। ऐसे हीं लिखते रहिये।
सुक्रिया—-
अरे!शुरू की दो पंक्तियाँ ही अपने आप में एक कविता है ।वाह वाह
सुक्रिया अभय जी —-आपको पसंद आया –अच्छा लगता है—–
बहुत ख़ुशी है , दर्द है जीवन में–
लिखकर बाँट लेते है—
आप सब की प्रतिक्रिया सच में ख़ुशी का काम करते हैं। बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
Waah waah
धन्यवाद पवन जी आपने कविता पसंद किया।
साधूवाद
Waah sir waaaah…
Bhuut bdiya kavita h…
Dhanyawaad sir aapne pasand kiya…
My pleasure