राम नाम को गाता जाए धुन में डफली बजा-बजा,
दे दो रे दो पैसे बाबू, राम करेगा तेरा भला—2।
सब लोगों के बीच में गाता,
हाथ जोड़कर उन्हें मनाता,
मिल जाते दो पैसे उसको,
जिससे अपनी भूख मिटाता,
जो भी समझा दर्द को उसके,
आँख से आँसूं छलक गया,
मानवता का चीख समझ,
पाषाण ह्रदय भी पिघल गया,
मिल जाते दो पैसे गाता,रब से करता खूब दुआ,
दे दो रे दो पैसे बाबु, राम करेगा तेरा भला—2।
पावँ बिना चप्पल के हैं और,
फटा पाजामा तन पर हैं,
बिना आँख के भटक रहा,
रब का जाने क्या मन में है,
साथ हाथ एक मैला थैला,
बस ये ही दुनिया सारी है,
दुनिया में पहचान है क्या,
हम कहते उसे भिखारी हैं,
दर्द को उसके जान सका ना,सभ्य बना है जग सारा,
दे दो रे दो पैसे बाबू राम करेगा तेरा भला—2।
ऐसे लाखों तड़प रहे हैं,
सभ्य समाज की बस्ती में,
मानवता चित्तकार रही,
हैं डूब गए हम मस्ती में,
वहां वोट का नशा चढ़ा,
दरबार जहाँ रखवालों के,
जाति,धर्म की चलती है,
अब प्रजातंत्र गलियारों में,
वोट है जिसका ज्यादा खुश है,बाकी ढफली बजा रहा,
दे दो रे दो पैसे बाबू, राम करेगा तेरा भला—2।
!!! मधुसूदन !!!
ashok joshi says
बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने
Madhusudan Singh says
आपको पसंद आया—-बहुत बहुत धन्यवाद।
gauravtrueheart says
बहुत अच्छा मधुसूदन जी
Madhusudan Singh says
Thank you so much.
Girija Arora says
well described.
Madhusudan Singh says
Thank you very much.