हवा ठंडी-ठंडी, घटा थी गगन में,
हँसी मिल रहे दो बहारे चमन में,
किसी को पता ना कोई खबर थी,
कि क्या घट रही थी बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
मुलाकात पहली डगर भी नई थी,
जमाने का भी डर उन्हें लग रही थी,
थे अरमान लाखों बसे उनके मन में,
निडर मिल रहे दो बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
जुबाँ बंद थी बस नजर मिल रहे थे,
निगाहों के रास्ते जिगर मिल रहे थे,
धड़कता जिगर जैसे किश्ती भंवर में,
हँसी मिल रहे दो बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
अंधेरा हुआ कब पता ना चला था,
लपककर गए द्वार ताला जड़ा था,
उड़े होश दोनों के पहले मिलन में,
हँसी मिल रहे दो बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
कभी चाँद खिलती कभी मुश्कुराती,
कभी मेघ के चाँद आगोश आती,
घटा,चाँद जैसा लगी दौड़ वन में,
हँसी मिल रहे दो बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
गरज मेघ फिर चाँद पर छा गया था,
चमन संग धरा पर अंधेरा घना था,
पिघलता गया मेघ फिर चाँद छाई,
चमन मेघ संग चांदनी से नहायी,
सवेरा हुआ खुले ताले चमन में,
मगर सो रहे थे हँसी दो चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
न थी चाँदनी,ना गगन में थे बादल,
भ्रमर गुनगुनाते उड़े जैसे पागल,
खुली पंखुड़ी पुष्प के सब चमन में,
मगर दो हँसी सो रहे थे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
भ्रमर गुनगुनाकर उन्हें फिर जगाया,
सवेरा हुआ उनको आभास आया,
हवा शांत थी उड़े बादल गगन से,
हँसी दो चले उड़ भ्रमर संग चमन से,
किसी को पता थी ना कोई खबर थी,
कि क्या घट रही थी बहारे चमन में,
हवा बह रही थी…………………..।
!!! मधुसूदन !!!
रजनी की रचनायें says
आपको तो सब रस पर बेहतरीन लिखने की कोई उपाधि मिलनी चाहिए। बहुत खूब। 👌👏💐👍
Madhusudan says
hausla badhaane ke liye bahut bahut dhanyawad…..jo bhi ji me aataa hai saaph hriday se likh detaa hun…….sukriya apka.
myexpressionofthoughtsblog says
Beautiful poem !!
Madhusudan says
thank your very much for your valuable comments.
myexpressionofthoughtsblog says
My pleasure sir